पौराणिक काहानी मे पुरखे कन्या का रज पीने का विधान है
प्राप्ते तु द्वादशे वर्षे यः कन्यां न प्रयच्छति ।
मासि मासि रजस्तस्याः पिबन्ति पितरः स्वयम् |
(पराशर स्मृति अध्याय ७ श्लोक ७)
अर्थात- बारह वर्ष होने के बाद भी जो कन्या का विवाह नही करता उस कन्या का ‘रज’ उसके पुरखे अर्थात पितर प्रत्येक मास स्वयं पीते हैं |
समीक्षा- पौराणिको के घर के भी विधान बड़े अजीब हैं, भला ये स्वधारस पौराणिक पितरों को क्यूँ पिलाया जा रहा है ? अब किसी पौराणिक कन्या विवाह १२ वर्ष नही होता तो क्या ये माना जाये कि उसका ‘रज’ उसके पुरखे गटकते होंगे ?? पौराणिको होश में आओ ! अपने पितरों को बचाओ, और अपनी कन्यायों का विवाह हर हाल में १२ वर्ष के पहले करो |
आर्य समाजियों की नक़ल छोड़ो | करके दिखाओ अपनी कन्यायों का विवाह १२ वर्ष के पहले |
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