पौराणिक भगवान शंकर ने किया भगवान विष्णु का बलात्कार, प्रचार में भागवत पुराण
भाइयो आपको पोस्ट थोड़ा अश्लील लगेगा, मगर क्या करे जो पुराण में सत्य है, लिखा है, वो तो पौराणिकों को मानना पड़ेगा न, सत्य तो यही है की पौराणिकों के देवी देवता कामुक और अश्लील कार्य करने में कभी हिचकते नहीं, शायद यही वजह है की पौराणिक बंधू भी गाली गलौच जैसे असभ्य कार्यो से कभी दूर नहीं रहते, क्योंकि जैसे इनके देवी देवता के कुकर्म पुराणो में भरे हैं, वैसी ही शिक्षा तो पौराणिक ग्रहण करेंगे।
देखिये श्रीमद्भगवतम् पुराण में भगवान शिव ने कैसे दूसरे भगवान विष्णु का बलात्कार कर डाला :
भगवान शंकर ने विष्णु से कहा की हमें वो मोहिनी रूप दिखाए जिसने असुरो से अमृत कलश छीन लिया, तब विष्णु जी ने कहा वो रूप बहुत ही काम उत्पन्न करने वाला है, लेकिन शंकर जी के हठ करने पर विष्णु जी मान गए। (स्कंध ८ अध्याय १२ श्लोक १३-१६)
एक सुंदर उपवन में शंकर जी अपनी पत्नी सती देवी के साथ बैठे थे, इतने में उपवन के चारो और शंकर जी ने निगाहे दौड़ाई तो पता चला एक सुंदरी गेंद को उछाल उछाल कर खेल रही थी,
वो इतनी सुंदरी थी और उसने सुन्दर साडी पहन रखी थी उसकी कमर में करधनी की लड़िया लटक रही हैं (१८)
गेंद के उछलने और लपककर पकड़ने से उसके स्तन और उनपर पड़े हुए हार हिल रहे हैं ऐसा जान पड़ता था मानो इनके भार से उसकी पतली कमर पग पग पर टूटते टूटते बच जाती है वह अपने लाल लाल पल्ल्वो के सामान सुकुमार चरणो से बड़ी कला के साथ ठुमुक ठुमुक कर चल रही थी (१९)
आगे और अश्लीलता है वो मैं नहीं लिख सकता आप स्वयं पढ़ लेवे।
इसके बाद शंकर जी सुद बुद्ध खो बैठे और सती को छोड़ उस स्त्री की और भागे मोहिनी अपनी गेंद के पीछे भागी तो हवा ने उसकी साडी उड़ा दी, मोहिनी निर्वस्त्र हो गयी (२३)
मोहिनी का एक एक अंग बड़ा ही रुचिकर और मनोरम था, जहाँ आँख लग जाती वहीँ रमण करने लगता ऐसे दशा में भगवान शंकर जी उस मोहिनी पर आकृष्ट हो गए, उन्हें लगा मोहिनी भी उनके प्रति आसक्त है (२४)
मोहिनी वस्त्रहीन तो पहले ही हो चुकी थी, शंकर जी को अपनी और आते देख बहुत लज्जित हो गयी वह एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष की आड़ में जाकर छिप जाती और हंसने लगती। परन्तु कहीं ठहरती न थी (२६)
भगवान शंकर की इन्द्रियां अपने वश में नहीं रही, वे कामवश हो गए थे, अतः हथिनी के पीछे हाथी की तरह उसके पीछे पीछे दौड़ने लगे (२७)
उन्होंने अत्यंत वेग से उसका पीछा करके पीछे से उका जूड़ा पकड़ लिया और उसकी (मोहिनी) की इच्छा न होने पर भी उसे दोनों भुजाओ में भरकर ह्रदय से लगा लिया (२८)
जैसे हाथी हथनी का आलिंगन करता है, वैसे ही भगवन शंकर ने उसका आलिंगन किया। वह इधर उधर खिसककर छुड़ाने की चेष्टा करने लगी, इस छिना झपटी में उसके सर के बाल बिखर गए (२९)
आगे और भी अश्लीलता है, संकोच वश नहीं लिख सकता, स्वयं पढ़े।
कामुक हथनी के पीछे दौड़ने वाले मंदोमत्त हाथी के सामान वे मोहिनी के पीछे पीछे दौड़ रहे थे, यद्यपि भगवान शंकर का वीर्य अमोघ है, फिर भी मोहिनी की माया से वह स्वखलित हो गया। (३२)
तो भाइयो इस तरह पौराणिक भगवन शंकर ने - दूसरे भगवान विष्णु का बलात्कार अंजाम दिया, अब वीर्य जो स्वखलित हुआ उसका चमत्कार देखिये :
भगवन शंकर का वीर्य पृथ्वी पर जहाँ जहाँ गिरा, वहां वहां सोने चांदी की खाने बन गयी (३३)
मेरे पौराणिक मित्रो, इन झूठी कपोल कल्पित कथाओ के द्वारा हमारे ऋषि मुनियो, महपुरषो का बड़ा अपमान होता है, देखो शंकर जी जैसा महापुरुष कैसा कुकर्म किया की अपनी पत्नी सती को छोड़ एक पुरुष (विष्णु) मोहिनी के साथ बलात्कार किया।
और भी सोचो की वीर्य से सोने चांदी की खाने बन गयी। क्या ऐसा हो सकता है ?
कृपया इन व्यर्थ के पुराणो को त्यागो, अश्लीलता के शिव इनमे कुछ नहीं, आओ महर्षि दयानंद के बताये ऋषि मार्ग पर चलकर पुनः वेद की और लौटे।
इस राष्ट्र को पुनः वास्तविक स्वरुप में लाये, इसलिए लौटो वेदो की और।
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