google01b5732cb2ec8f39 दैत्यगुरु शुक्राचार्य की शिव के शिश्न से उत्पत्ति ~ আর্যবীর आर्यवीर aryaveer

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दैत्यगुरु शुक्राचार्य की शिव के शिश्न से उत्पत्ति

दैत्यगुरु शुक्राचार्य की शिव के शिश्न से उत्पत्ति



दैत्यगुरु शुक्राचार्य की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्तांत

दानवराज अंधकासुर और महादेव के मध्य घोर युद्ध चल रहा था | अन्धक के प्रमुख सेनानी युद्ध में मारे गए पर भार्गव ने अपनी संजीवनी विद्या से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया | पुनः जीवित हो कर कुजम्भ आदि दैत्य फिर से युद्ध करने लगे | इस पर नंदी आदि गण महादेव से कहने लगे कि जिन दैत्यों को हम मार गिराते हैं उन्हें दैत्य गुरु संजीवनी विद्या से पुनः जीवित कर देते हैं , ऐसे में हमारे बल पौरुष का क्या महत्व है | यह सुन कर महादेव ने दैत्य गुरु को अपने मुख से निगल कर उदरस्थ कर लिया | उदर में जा कर कवि ने शंकर कि स्तुति आरम्भ कर दी जिस से प्रसन्न हो कर शिव ने उन को बाहर निकलने कि अनुमति दे दी | भार्गव श्रेष्ठ एक दिव्य वर्ष तक महादेव के उदर में ही विचरते रहे पर कोई छोर न मिलने पर पुनः शिव स्तुति करने लगे | बार बार प्रार्थना करने पर भगवान शंकर ने हंस कर कहा कि मेरे उदर में होने के कारण तुम मेरे पुत्र हो गए हो अतः मेरे शिश्न से बाहर आ जाओ | आज से समस्त चराचर जगत में तुम शुक्र के नाम से ही जाने जाओगे | शुक्रत्व पा कर भार्गव भगवान शंकर के शिश्न से निकल आये और दैत्य सेना कि और प्रस्थान कर गए | तब से कवि शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए |
(शिव पुराण, रूद्र संहिता 2, पंचम युद्ध खंड)

अब देखो पौराणिक विज्ञानं की, एक पुरुष ने दूसरे पुरुष को अपने मुह में रख कर पेट में डाल दिया, और वो पेट में (गर्भ) में १ वर्ष तक रहा, बाद में शिश्न (लिंग) से वीर्य की भाँती शिव ने बाहर निकाल दिया।
ये कौन सा विज्ञानं है ? क्या पुरुषो में गर्भ होता है ?
कोई पुरुष कैसे किसी दूसरे पुरुष को खाकर गर्भ में रखता है ?
क्या शिश्न (लिंग) से कोई पुरुष बाहर आ सकता है ?
क्या कोई पुरुष एक पुरुष को खा लेवे तो वो नरभक्षी न हो ?
ये कैसा अंधकार पौराणिकों ने चलाया है ?

अब देखो, पौराणिक शिव की लीला, एक तो कमजोर, असहाय, बताओ वैसे तो पौराणिक कहते हैं शिव इतना शक्तिशाली की सब कुछ कर सकता है, वही दूसरी और साधारण जीवो से लड़ना पड़ता है, ये कैसा ईश्वर है जो साधारण मनुष्यो, राक्षसो, दानवो पर अपना जीत दिखाकर, वीरता की डींगे भरता है ?
क्या ऐसा भी कोई ईश्वर होता है ? अरे वीरता है तो अपने सामान ईश्वर से लड़ो, लेकिन नहीं जीतेंगे कैसे ? इसलिए साधारण मनुष्यो, दानवो पर जीत दर्ज करके अपनी सर्वशक्तिमत्ता प्रकट करो, क्या ये सर्वशक्तिमत्ता है ?
और देखो, दानव कैसे वीर हुए जो शिव को भी लड़ने को मजबूर कर दिया, एक ईश्वर को स्वयं मनुष्यो से लड़ना पड़ा, वाह रे वाह पौराणिकों तुम तो ईसाई और मुसलमानो के लड़क्कड़ खुदा से भी दो कदम आगे अपने इष्ट को ले गए।
ऐसे काम तो कोई ईश्वर न करता, वो तो लड़ना भी नहीं पड़ता, वैसे ही कर देता है, कर्मो के फल देकर, देखो निराकार ईश्वर इतना सर्वशक्तिमान सिद्ध हुआ, और तुम्हारा साकार इष्ट तो तुच्छ मनुष्यो में ही अपनी शक्ति व्यर्थ किया।

इसलिए वेदों की ओर लौटो |

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