यज्ञ विध्वंसक पुराणिक शंकर और लिंगपति अश्लील !
यज्ञ को वैदिक वांग्मय में श्रेष्ट कर्म कहा है | लेकिन कोई यज्ञ में निंदनीय अश्लील कर्म करे उसे क्या कहेंगे -
पद्मपुराण सृष्टि खंड अध्याय १७ में एक कथा आती है - " एक समय ब्रह्मा
जी यज्ञ कर रहे थे | शंकर जी यज्ञ शाला में एक हाथ में मानव खोपड़ी ले कर रित्विज्यो के पास आ कर बेठ गये | उनके इस प्रकार निंदनीय वेश को देख वेद पाठी ब्राह्मणों ने उन्हें यज्ञ से जाने को कहा लेकिन वे नही गये तब उन्हें यज्ञ शाला में भोजन करा कर संतुष्ट किया गया |तब कही यह कह कर कि पुष्कर स्नान के लिए जा रहे है वे वहा से चले गये लेकिन कपाल को यज्ञ शाळा में ही छोड़ गये | जब ब्राह्मणों ने कपाल को फेका तो वहा उसकी जगह दूसरा कपाल आ गया इस तरह यह सब १००० बार हुआ और १००० बार नया कपाल आ जाता | फिर ब्रह्मा ने शंकर की स्तुति की तब वहा से सारे कपाल गायब हुए | इसके बाद १ मन्वन्तर के बाद पुन ब्रह्मा ने यज्ञ किया लेकिन इस बार शंकर जी नग्न हो कर हाथ में उपस्थेन्द्रीय (लिंग ) लेकर यज्ञ मंडप में आ गये | वहा उपस्थित लोगो ने उन्हें धिक्कारा घसीटकर बाहर किया और कहा कि स्त्रियों की उपस्थति में तुम्हारा इस प्रकार प्रवेश करना निंदनीय है | इस बात से गुस्सा हो कर शंकर ने ब्राह्मणों को अनेक शाप दिए |
समीक्षा- देखो पोरानिको क्या कोई बतायेगा ये तुम्हारे शंकर जी जहा जाते थे लिंग हाथ में ले कर क्यूँ जाते थे ? मोहिनी के पीछे लिंग ले कर, अनसूया के पास लिंग ले कर और ब्रह्मा के यज्ञ में लिंग ले कर | यदि वे लेकर घूमते हैं
तो तुम लोग उनका अनुपालन किस भय से नही करते हो? इस पौराणिक
विज्ञान का रहस्य दुनिया को भी पता चलने दो | चलो बताओ उपरोक्त दोनों कर्मो से शंकर जी ने यज्ञ का मान बढाया या यज्ञ का नाश किया उसका अपमान किया ? यह सब विचार कर पुराणों को अवश्य त्यागे |
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