शिव पुराण के अनुसार शिवलिङ्ग (गुप्तेंद्रिय) काटने की काहानी
मित्रों अक्सर हमारे पौराणिक बंधू ये प्रचारित करते हैं कि शिवलिंग पूजना बड़ा अच्छा है क्यूंकि शिवलिंग का अर्थ है शिव का प्रतीक या चिन्ह पर वास्तव में लिंग पूजा वाममार्गियों की चलायी हुई है, सनातन धर्म या वैदिक धर्म का इससे कोई सम्बन्ध नही है | और शिवलिंग का अर्थ भी शिव का चिन्ह या प्रतीक नही बल्कि शिव की मुतेंद्रीय है | जो हम शिवपुराण के प्रमाण से आपको दिखा देंगे,नीचे शिवपुराण के श्लोकों का हिंदी अनुवाद है ----
1- दारू नाम का एक वन था, वहाँ पर सत्पुरूष लोग रहते थे, जो शिव के भक्त थे तथा नित्यप्रति शिव का ध्यान किया करते थे ।६।
2- वे कभी लकड़ियाँ चुनने के लिए वन को गये । वे सब-के-सब श्रेष्ठ ब्राह्मण, शिव के भक्त, तथा शिव का ध्यान करनेवाले थे ।८।
3- इतने मेँ साक्षात् महादेवजी विकट रूप धारण कर उनकी परीक्षा के निमित्त आ पहुँचे ।९।
4- नंगे, अति तेजस्वी, विभूतिभूषण से शोभायमान, कामियोँ के समान दुष्ट चेष्टा करते हुए, हांथ मेँ लिँग धारण करके ।१०।
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5- उसको देखकर ऋषिओँ की पत्नियाँ अत्यन्त व्याकुल तथा हैरान हुईँ, कई वापस आ गईँ ।१२।
6- कई आलिगंन करने लगीँ, कई ने हांथ मेँ धारण कर लिया तथा परस्पर के संघर्ष मेँ वे स्त्रियाँ मग्न हो गईँ ।१३।
7-इतने मेँ ऋषि महात्मा आ गये । इस प्रकार के विरूद्ध काम को देखकर वे दुःखी हो क्रोध से मुर्च्छित हो गये ।१४।
8- तब दुःख को प्राप्त हुए वे कहने लगे- ये कौन है , ये कौन है ? वे सब-के-सब ऋषि शिव की माया से मोहित हो गये ।१५।
9- जब उस नंगे अवधूत ने कुछ भी उत्तर न दिया, तब वे परम ऋषि उस भयंकर पुरूष को योँ कहने लगे ।१६।
10-तुम जो यह वेद के मार्ग को लोप करनेवाला विरूद्ध काम करते हो, इसलिए तुम्हारा ये लिँग पृथिवी पर गिर पड़े ।१७।
11- उनके इस प्रकार कहने पर उस अद्भुत रूपधारी , अवधूत शिव का लिँग उसी समय गिर पड़ा ।१८।
12-ऊस लिँग ने सब-कुछ जो आगे आया अग्नि की भाँति जला दिया । जहाँ जहाँ वह जाता था वहाँ-वहाँ सब-कुछ जला देता था १९।
13-वह पाताल मेँ भी गया, वह स्वर्ग मेँ भी गया, वह भूमि मेँ सब जगह गया, किन्तू वह कहीँ भी स्थिर नहीँ हुआ ।२०।
14-सारे लोक-लोकान्तर व्याकुल हो गये तथा वे ऋषि अति दुःखित हुए ।२१।
15- वे दुःखी हुए सब मिलकर ब्रह्मा जी के पास गये ।२२।
16- तब ब्रह्मा उन ऋषिओँ को स्वंय कहने लगे ।३१।
17- हे देवताओँ ! पार्वती की आराधना करके शिव की प्रार्थना करो, यदि पार्वती योनिरूप हो जावे तो वह लिँग स्थिरता को प्राप्त हो जावेगा ।३२।
18- जब उन ऋषियोँ ने परमभक्ति से शंकर की प्रार्थना और पूजा की, तब अति प्रसन्न होकर महादेवजी उनसे बोले ।४४।
19- हे देवता और ऋषि लोगो ! आप सब मेरी बात को आदर से सुनेँ । यदि मेरा लिँग योनिरूप से धारण किया जावे तब शान्ति हो सकती है ।४५।
20- मेरे लिँग को पार्वती के बिना और कोई धारण नहीँ कर सकता । उससे धारण किया हुआ मेरा लिँग शीध्र ही शान्ति को प्राप्त हो जायेगा ।४६।
21- पार्वती तथा शिव को प्रसन्न करके और पूर्वोक्त विधि के अनुसार वह उत्तम लिँग स्थापित किया गया ।४८।
(समस्त प्रकरण के लिये देखिये शिवमहापुराण कोटिरुद्रसहिंता ४, अध्याय १२ श्लोक ६-४८)
इस लिंक शिवमहापुराण इस काहानी की सारे श्लोक देख सकते है👇
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नमस्ते
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