google01b5732cb2ec8f39 March 2020 ~ আর্যবীর आर्यवीर aryaveer

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लुच्चे कामी आदि शंकराचार्य


लुच्चे कामी आदि शंकराचार्य




मित्रों सभी जानते हैं कि आदि शंकराचार्य का मंडन मिश्र की पत्नी
से शास्त्रार्थ हुआ था, जिसमें वे पराजित हो गये थे क्यूंकि मिश्रजी
पत्नी ने 'काम' विषय पर सवाल पूछ लिये थे | जाहिर था सर्वज्ञ
शिव के अवतार आदि शंकराचार्य को इसका ज्ञान था, पर अपने
ब्रह्मचर्य के कारण व्रत के कारण इसका उत्तर नही दिया | पर वास्तव
में वो मौज उड़ाना चाहते थे, इसलिए मिश्र की पत्नी से एक महीने का
समय लेकर काम कला की प्रैक्टिस करने के लिये एक मृत राजा के
शरीर में घुसकर उनकी बीवियों संग जमके मौज उड़ाई | सार्री बातो
के 'शंकर दिग्विजय' जो की आदि शंकराचार्य की प्रमाणिक जीवनी
है उसका नवा और दसवा सर्ग पढ़ा जा सका | फिलहाल शंकारचार्य नेराजा के शरीर में घुस कर कैसी मौज उड़ाई इसका अनुमान १०वें
सर्ग इन श्लोको लगता है। चाँदनी के समान चमकने वाले स्फटिकशिला पर मनोहर तकिया वाले घर मेँ, राजा शरीर धारी शंकराचार्य सुन्दरी स्त्रियोँ के साथ द्यूतक्रीड़ा करता था, और एक-दूसरे के जीत लेने पर अधरदान, गोद मेँ बैठाना, बड़े-बड़े कमलोँ से मारना तथा विपरीत रति की शर्त रखता था।
स्त्रियोँ के अधरसुधा का स्पर्श होने के कारण रूचिकर, मुँह की वायु का संसर्ग हो जाने के कारण अत्यन्त सुगन्धित, प्रियतमा के हाथोँ लाये गये अत्यन्त मनोहर, मद उत्पन्न करने वाले, चन्द्रमा की किरणोँ के पड़ने कारण चमकने वाले मद्य को वह राजा शरीर धारी शंकराचार्य स्वंय पीता था और प्रियतमाओँ को पिलाता था ।

जिनके मुख पर कुछ पसीना आ गया था, ऐसी शराब के नशे मेँ अस्फुट अक्षर बोलने वाली स्त्रियोँ की रोमांच तथा सीत्कारयुक्त मनोहर ध्वनि को सुनकर कमल के समान सुगन्धित काम को प्रकट करने वाले अर्द्धविकसित तथा थोड़ी थोड़ी लज्जा से युक्त नेत्रोँ वाली तथा चञ्चल बालोँ वाली पत्नियोँ के मुख का चुम्बन करके राजा शरीर धारी शंकराचार्य धन्य हो गया।जिसमेँ जंघायेँ खुली हुई थी, ओँष्ठ दन्तक्षत के कारण घायल हो गये थे, स्तन पीड़ित हो गये थे, सुरतकालीन शब्द से युक्त, उत्साहपूर्वक तथा मणिरचित करधनी के शब्दोँ से युक्त, राजा के द्वारा की जाने वाली सुरतक्रीड़ा मेँ गात्र नाच रहे थे और सुख चारो ओर फैल रहा था ।कामकला के तत्त्व को जानने वाले तथा मनोहर चेष्टाओँ को करने वाले उस राजा शरीर धारी शंकराचार्य की इन्द्रियाँ सभी विषयोँ के भोग मेँ लगी हुई थी । उत्तम स्त्रियोँ के द्वारा सेवित राजा शरीर धारी शंकराचार्य उनके स्तन रूपी गुरू की सेवा करने के कारण अत्यन्त प्रसन्न था और उसने रतिक्रीड़ा रूपी ब्रह्मानन्द का निर्बाध रूप से अनुभव किया


यह काहानी शंकराचार्य की जीवनचरित्र दिग्विजयके आधार पर लिखित, लेखक-उमादत्त शर्मा, द्वादश परिच्छेद, १३५-१४८ पृष्ठ







শিবপুরাণ, কোটিরুদ্রসংহিতা, ১২ অধ্যায়, শ্লোক ৮- ৪৮ 

शिवपुराण, कोटिरुद्रसंहिता, १२ अध्याय, श्लोक ८-४८









शिव पुराण के अनुसार शिवलिङ्ग (गुप्तेंद्रिय) काटने की काहानी



शिव पुराण के अनुसार शिवलिङ्ग (गुप्तेंद्रिय) काटने की काहानी 




मित्रों अक्सर हमारे पौराणिक बंधू ये प्रचारित करते हैं कि शिवलिंग पूजना बड़ा अच्छा है क्यूंकि शिवलिंग का अर्थ है शिव का प्रतीक या चिन्ह पर वास्तव में लिंग पूजा वाममार्गियों की चलायी हुई है, सनातन धर्म या वैदिक धर्म का इससे कोई सम्बन्ध नही है | और शिवलिंग का अर्थ भी शिव का चिन्ह या प्रतीक नही बल्कि शिव की मुतेंद्रीय है | जो हम शिवपुराण के प्रमाण से आपको दिखा देंगे,नीचे शिवपुराण के श्लोकों का हिंदी अनुवाद है ----

1- दारू नाम का एक वन था, वहाँ पर सत्पुरूष लोग रहते थे, जो शिव के भक्त थे तथा नित्यप्रति शिव का ध्यान किया करते थे ।६।

2- वे कभी लकड़ियाँ चुनने के लिए वन को गये । वे सब-के-सब श्रेष्ठ ब्राह्मण, शिव के भक्त, तथा शिव का ध्यान करनेवाले थे ।८।

3- इतने मेँ साक्षात्‌ महादेवजी विकट रूप धारण कर उनकी परीक्षा के निमित्त आ पहुँचे ।९।

4- नंगे, अति तेजस्वी, विभूतिभूषण से शोभायमान, कामियोँ के समान दुष्ट चेष्टा करते हुए, हांथ मेँ लिँग धारण करके ।१०।

5- उसको देखकर ऋषिओँ की पत्नियाँ अत्यन्त व्याकुल तथा हैरान हुईँ, कई वापस आ गईँ ।१२।

6- कई आलिगंन करने लगीँ, कई ने हांथ मेँ धारण कर लिया तथा परस्पर के संघर्ष मेँ वे स्त्रियाँ मग्न हो गईँ ।१३।

7-इतने मेँ ऋषि महात्मा आ गये । इस प्रकार के विरूद्ध काम को देखकर वे दुःखी हो क्रोध से मुर्च्छित हो गये ।१४।

8- तब दुःख को प्राप्त हुए वे कहने लगे- ये कौन है , ये कौन है ? वे सब-के-सब ऋषि शिव की माया से मोहित हो गये ।१५।

9- जब उस नंगे अवधूत ने कुछ भी उत्तर न दिया, तब वे परम ऋषि उस भयंकर पुरूष को योँ कहने लगे ।१६।

10-तुम जो यह वेद के मार्ग को लोप करनेवाला विरूद्ध काम करते हो, इसलिए तुम्हारा ये लिँग पृथिवी पर गिर पड़े ।१७।

11- उनके इस प्रकार कहने पर उस अद्‌भुत रूपधारी , अवधूत शिव का लिँग उसी समय गिर पड़ा ।१८।

12-ऊस लिँग ने सब-कुछ जो आगे आया अग्नि की भाँति जला दिया । जहाँ जहाँ वह जाता था वहाँ-वहाँ सब-कुछ जला देता था १९।

13-वह पाताल मेँ भी गया, वह स्वर्ग मेँ भी गया, वह भूमि मेँ सब जगह गया, किन्तू वह कहीँ भी स्थिर नहीँ हुआ ।२०।

14-सारे लोक-लोकान्तर व्याकुल हो गये तथा वे ऋषि अति दुःखित हुए ।२१।

15- वे दुःखी हुए सब मिलकर ब्रह्मा जी के पास गये ।२२।

16- तब ब्रह्मा उन ऋषिओँ को स्वंय कहने लगे ।३१।

17- हे देवताओँ ! पार्वती की आराधना करके शिव की प्रार्थना करो, यदि पार्वती योनिरूप हो जावे तो वह लिँग स्थिरता को प्राप्त हो जावेगा ।३२।

18- जब उन ऋषियोँ ने परमभक्ति से शंकर की प्रार्थना और पूजा की, तब अति प्रसन्न होकर महादेवजी उनसे बोले ।४४।

19- हे देवता और ऋषि लोगो ! आप सब मेरी बात को आदर से सुनेँ । यदि मेरा लिँग योनिरूप से धारण किया जावे तब शान्ति हो सकती है ।४५।

20- मेरे लिँग को पार्वती के बिना और कोई धारण नहीँ कर सकता । उससे धारण किया हुआ मेरा लिँग शीध्र ही शान्ति को प्राप्त हो जायेगा ।४६।

21- पार्वती तथा शिव को प्रसन्न करके और पूर्वोक्त विधि के अनुसार वह उत्तम लिँग स्थापित किया गया ।४८।

(समस्त प्रकरण के लिये देखिये शिवमहापुराण कोटिरुद्रसहिंता ४, अध्याय १२ श्लोक ६-४८)


इस लिंक शिवमहापुराण इस काहानी की सारे श्लोक देख सकते है👇

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नमस्ते

দেখুন কিভাবে ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ শ্রীকৃষ্ণকে লুচ্চা, কামী বানিয়েছে


দেখুন কিভাবে ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ শ্রীকৃষ্ণকে লুচ্চা, কামী বানিয়েছে



বাইবেল, কুরআনে যেমন সহস্র অশ্লীলতা আছে ঠিক তেমনি পুরাণ কাহিনীর ভেতরে অশ্লীল কাহিনীতে ভর্তি, তাই আমি পুরাণ কে 18+ বলেই ডাকি। ঋষি ব্রহ্মা, যোগী মহাদেব, যোগী কৃষ্ণ, নারদ, ইন্দ্র ইত্যাদি মহাপুরুষদের চরিত্রকে কুলষিত করার জন্য যদি কেউ প্রতিজ্ঞা নিয়ে থাকে তাহলে তারা হলো 18+ অশ্লীল পুরাণের লেখকগণ। 18+ পুরাণ কাহিনীর মধ্যে একটি পুরাণ হলো ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ যোগীরাজ কৃষ্ণের চরিত্রকে খারাপ করার জন্য হয়তো প্রতিজ্ঞা নিয়েছিল এই তিন পুরাণের লেখকগণ। সেই পুরাণ গুলো হলো ভাগবত পুরাণ, বিষ্ণু পুরাণ এবং এই ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ, আজ আমি এই ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণের অনেক অশ্লীল কাহিনী থেকে কিছু অংশ তুলে ধরছি যার থেকে জানবেন যে কিভাবে আমাদের মহাপুরুষ শ্রীকৃষ্ণকে কামী বানানো হয়েছে, দেখুন_____

ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ, কৃষ্ণজন্ম খণ্ড, অধ্যায় ৮৮

গোপীগণ এসে কৃষ্ণকে স্তন এবং শ্রোণী দেখাচ্ছেন! (শ্রোণী বলতে নিতম্বদেশের আসে পাশে যে  অঙ্গ গুলো থাকে যেমন যোনি, মলদ্বার এর পুরো সমষ্টি কে শ্রোণী বলা হয় ) , কোনো গোপিনী কৃষ্ণ কে সেই শ্রোণীতে স্থাপন করেছে , সেই লীলায় এক গোপিনী আর এক গোপিনী কে উলঙ্গ করছে, কৃষ্ণ কে নিয়ে তারা কাম কর্মে লিপ্ত হলো গোপীগণ, কৃষ্ণও লিপ্ত হলো, মনের আনন্দে কোনো গোপীগণ নিত্য করছে, ভগবান শ্রীকৃষ্ণ কৌতূহল ভাবে গোপিনীদের উলঙ্গ করতে শুরু করলেন , গোপীগণ তাদের কাপড় নিয়ে খেলা করছে। কৃষ্ণ রাধিকাকে বক্ষে জড়িয়ে ধরেন । নবীন সঙ্গমে তার হারায় চেতন, গোপীদের স্তনের ওপর নখ দিয়ে ক্ষত করেন কৃষ্ণ জী, শুধু তাই নয় যোনি ,মলদ্বার ইত্যাদিতেও নখ দিয়ে আঘাত করেছে কৃষ্ণজী আর এই ভাবে লীলা চালিয়ে যাচ্ছে। যে কৃষ্ণ গীতার মতো জ্ঞান দিয়েছে যে গীতার জ্ঞান শ্রবণ করে  অর্জুন নিজের ক্ষাত্র ধর্মকে পালন করার জন্য যুদ্ধ করতে লেগেছিল, সেই কৃষ্ণ এমন লুচ্চামি করবে ?


ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ, কৃষ্ণজন্ম খণ্ড, অধ্যায় ২৮

যোগীরাজ শ্রীকৃষ্ণ গীতায় বলেছেন ১৬ অধ্যায় ২১ শ্লোক- হে অর্জুন! কাম, ক্রোধ এবং লোভ হলো নরকের দরজা, এগুলো কে ত্যাগ করো। যে কৃষ্ণ এমন কথা বলেছে গীতায় যে কাম হলো নরকের দরজা এবং একে এড়িয়ে চলতে বলেছে সেই কৃষ্ণকে এমন এমন কুকর্মে লিপ্ত করেছে এই ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণের লেখক! এই মূর্খ ভণ্ড পুরাণ লেখকগণ তো কৃষ্ণকেই স্ববিরোধী বানিয়ে দিচ্ছে! যে কৃষ্ণ একজন মহাজ্ঞানী ছিলেন, গীতায় তাকে যোগী এবং যোগেশ্বর(মহাযোগী) বলা হয়েছে, সেই কৃষ্ণজীকে এই সমস্ত অশ্লীল পুরাণের লেখক হয় কামী বানিয়ে দিয়েছে, এই ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণকে তো বৈষ্ণবগণ খুবই মেনে চলে, কতটা নিলজ্জ অসভ্য হলে এই সমস্ত অশ্লীল বইকে ধর্ম গ্রন্থ বলা যায় তা ভাবার বিষয়, এগুলোই যদি ধর্ম গ্রন্থ হয় তাহলে অধর্মের গ্রন্থ কেমন হবে ? কিছু আবাল কৃষ্ণ ভক্ত আছে যারা এই সমস্ত কাহিনীকে সত্য বলে মনে করে, আবার আরও কিছু মূর্খ আছে যারা এই অশ্লীল লীলা গুলোকে আধ্যাত্মিক বলে কথন করে। কোনো বৈষ্ণবকে যদি এই অশ্লীলতা গুলো নিয়ে প্রশ্ন করা হয় তাহলে কি উত্তর দেয় জানেন, তাদের উত্তর এই যে "এই সমস্ত লীলা বোঝার ক্ষমতা তোমাদের হয়নি, একমাত্র সদা বৈষ্ণব হলেই এই অধ্যাত্মিক লীলা বুঝতে পারবে"। উক্ত অশ্লীলতার বিরুদ্ধে কিছু বললেই এমন ত্যানা পেঁচিয়ে পালিয়ে যায়, কারণ ভণ্ডের কাছে ভালো কিছু মিলে না। এই অশ্লীল লীলা গুলো লিখেছে সুবিধাবাদী ভণ্ড গোসাইরা এরা নিজেরা কুকর্ম চালাতো আর সেই কুকর্মকে সঠিক প্রমাণ করার শ্রীকৃষ্ণের মতো যোগী আপ্ত পুরুষের গায়ে দাগ লাগাতে ওই সমস্ত ভণ্ডরা একবারও ভাবেনি, এখনো অনেক এমন বৈষ্ণব আছে যারা এমন কথা বলে যে কৃষ্ণ যখন ভগবান হয়ে এমন করতে পারে তাহলে আমরা করলে দোষ কোথায় ? এইভাবেই ভণ্ড গোসাইরা লুচ্চামির বংশ পরম্পরা চালিয়ে যাচ্ছে শ্রীকৃষ্ণের দোহাই দিয়ে।



এই ব্রহ্মবৈবর্ত  পুরাণের মধ্যে যেমন অশ্লীলতাই ভরপুর ঠিক তেমনি মহাবিজ্ঞানেও ভরপুর,দেখুন একটি মহাবিজ্ঞান_____




ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ, কৃষ্ণজন্ম খণ্ড, অধ্যায় ৮৮ 


এই অধ্যায় এর শেষের শ্লোক গুলোতে পাবে এই বিজ্ঞান টি আছে যে ব্রহ্মা কামিনীদের শ্রোণী দর্শন করার পর কাম কর্ম করতে করতে ব্রহ্মা জীর বীর্য বেরিয়ে আসে, যার কারণে ব্রহ্মা খুবই লজ্জিত হন, ব্রহ্মা জীর সেই বীর্য ক্ষেপণ করা হয়েছিল ক্ষীরোদ সাগরে সেখান থেকে তৈরি হয় আগুনের , বিষ্ণু তাকে দাহ শক্তি দান করেন, এই বিজ্ঞান টি জেনে নিন যে আগুনের উৎপত্তি কি ভাবে, পরে লিখেছে যে অগ্নি রম্ভার স্তন দর্শন করে কাম কর্মে লিপ্ত হন তারপর অগ্নির বীর্য বেরিয়ে আসে সেই বীর্য প্রদীপ্ত সুবর্ণ উজ্জ্বল রূপে পরিনত হয়, বিশ্বের সবচেয়ে বড় বৈজ্ঞানিক সংস্থা নাসা যদি এই সমস্ত বিজ্ঞানের কাছে পৌঁছাতে চায় তাহলে আরও ১০৮৬৯৭৬৭৮৭৬৯২ বছর চেষ্টা করতে হবে তাদের।



নমস্তে 🙏




স্বামী বিবেকানন্দের নজরে নবী মুহাম্মদ ছিল একজন আচার্য এবং অবতার

স্বামী বিবেকানন্দের নজরে নবী মুহাম্মদ ছিল একজন মহাপুরুষ, আচার্য এবং অবতার 





আমাদের হিন্দু ভাইদের প্রাণ হলো বিবেকানন্দ, বিবেকানন্দের বিরুদ্ধে কিছু বললেই ইহারা রেগে যায় এবং গালি দিতে শুরু করে যেরূপ মুহাম্মদের বিরুদ্ধে কিছু বললে মুসলিমরা রেগে যায় ঠিক তেমনি আমাদের হিন্দুরা ভাইরা রেগে যায় বিবেকানন্দের বিরুদ্ধে কিছু বললেই। হিন্দুরা এইটাই বোঝাতে চায় যে বিবেকানন্দ যাই বলুক না কেন শুধু অন্ধের মতো মেনে চলতে হবে, কোনো প্রকারের বিচার করা চলবে না, তাই  আসুন আজ জানি যে বিবেকানন্দের নজরে ইসলামের প্রতিষ্ঠাতা মুহাম্মদ কেমন ছিল, বিবেকানন্দ ১৯০০ সালে ২৫ মার্চে একটি ভাষণ দিয়েছিল সান- ফ্রান্সিস্কোরে, এই ভাষণ টি লিখিত আছে বিবেকানন্দ বাণী ও রচনা খণ্ড ৮ এর মধ্যে______




বিবেকানন্দের এই বক্তৃতা অনুযায়ী কৃষ্ণের ,বুদ্ধ ,যীশু এবং মুহাম্মদ ! বিবেকানন্দের মতে মুহাম্মদ ছিল একজন মহাপুরুষ এবং বিবেকানন্দ কথা অনুযায়ী মুহাম্মদ অধর্ম কে বিনাশ করে ধর্মের প্রতিষ্ঠা করেছিল। হিন্দু ভাইরা বিবেকানন্দের এই কথন তো অবশ্যই সত্য তাইনা ? এই ভাষণের শেষে বিবেকানন্দ গীতার সেই  ৪ অধ্যায়ের ৭ শ্লোকটি উদ্ধৃত করেন অর্থাৎ বিবেকানন্দ মুহাম্মদ কে অবতার মনে করতেন।বিবেকানন্দ বলেছে যে মুহাম্মদ পৌত্তলিক, নরবলি, কুসংস্কার ইত্যাদি দেখে মুহাম্মদের হৃদয় ব্যথিত হয়েছিল, হিন্দু ভাইরা একটু ভেবে চিন্তে বলো তো মুহাম্মদ কি এমন ছিল ? বিবেকানন্দ জী এখানে কুরআনের কিছু বাণীও প্রকাশ করেছে যে কিভাবে জিব্রাইল মুহাম্মদকে কুরআন বাণী দিয়েছিল। বিবেকানন্দ বলে যে মুহাম্মদ অনেক পত্নী গ্রহণ করেছিল, বিবেকানন্দের মতে  প্রত্যেক মহাপুরুষগণ দুইশত পত্নী গ্রহণ করতে পারবে,  বিবেকানন্দের মতে মহাপুরুষদের চরিত্র কে বিচার করা আমাদের উচিত নয়, মুহাম্মদ এর ধর্ম অবতীর্ণ হয়েছিল বার্তারূপে, মুহাম্মদ এর প্রথম বাণী সাম্য, একমাত্র ধর্ম আছে যার নাম প্রেম, জাতি বর্ণ বলে কিছু নেই  ইত্যাদি আরো অনেক কিছু বলেছে, আপনারা অবশ্যই পড়ে নেবেন কিন্তু। হিন্দু ভাইরা মুহাম্মদ তো সত্যিই এমন ছিল তাইনা ? কাজেই আমাদের হিন্দু ভাইদের উচিত শ্রীরাম, শিব, শ্রীকৃষ্ণ আদির পূজার সাথে সাথে মুহাম্মদেরও পূজা করা। কারণ আপনাদের বিবেকানন্দ অর্থাৎ যাকে আপনারা শ্রেষ্ঠ ধর্ম প্রচারক বলে মনে করেন তিনিই যখন মুহাম্মদ কে মহাপুরুষ, আচার্য, অবতার বলেছে, তাই নিঃসন্দেহে কিন্তু বিবেকানন্দের এই কথা গ্রহণ করা উচিত, হিন্দু ভাইরা আপনারা আজ থেকেই বিবেকানন্দের আদর্শকে মেনে চলে অবশ্যই মুহাম্মদের পূজা করুন। 




নমস্তে

মহর্ষি দয়ানন্দের লিখা সত্যার্থ প্রকাশে থাকা সূর্যে মনুষ্য আদি জীব নিয়ে অপপ্রচারের জবাব

মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতীর লিখা "সত্যার্থ প্রকাশ" এর অষ্টম সমুল্লাসে উল্লিখিত সূর্যে মনুষ্য আদি জীব নিয়ে অপপ্রচারের জবাব! 



ত্যার্থ প্রকাশের এই বিষয়টি নিয়ে অপপ্রচার শুধু এই দুই বাংলায় নয় বরং বাংলার বাইরেও চলে কারণ সকল পৌরাণিক সমাজের কাজই হলো এই যে আর্য সমাজের কোনো ফাঁক পাওয়া যায় কিনা যদি পাওয়া যায় তাহলেই তো মহর্ষি দয়ানন্দ কে ভন্ড ভন্ড বলে চিল্লানো যাবে! দেখুন ইহারা কোনো প্রকারের জ্ঞান না রেখে কিভাবে অপপ্রচার করে____


অপপ্রচারঃ  দয়ানন্দ সরস্বতী সত্যার্থ প্রকাশে বলেছে যে সূর্যের মধ্যে মানুষ আদি জীব বাস করে সূর্যে জীব থাকা কিভাবে সম্ভব ? মহর্ষি দয়ানন্দ মূর্খ, পাগল, ভন্ড আদি আদি।


অপপ্রচারের জবাবঃ আমি বললাম কিনা এদের কাজ হলো অপপ্রচার করে মহর্ষি দয়ানন্দকে গালি দেওয়া। যারা মহর্ষি দয়ানন্দের বিরুদ্ধে অপপ্রচার করে তারা যে কতবড় মাপের মূর্খ এবং অন্ধ তা বুঝতে পারবেন একটু পড়ে, এখন দেখে নেওয়া যাক যে মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী সত্যার্থ প্রকাশের অষ্টম সমুল্লাসে কি বলেছে, এখানে তিনি লিখেছে যে "পৃথিবী, জল, অগ্নি, বায়ু, সূর্য, নক্ষত্র, চন্দ্র, আকাশ এই সকলের নাম 'বসু' কারণ এই সকলের মধ্যে  যাবতীয় পদার্থ এবং মনুষ্য আদি প্রজা বাস করে।" এই কথনটি নিয়ে পৌরানিকদের কি উল্লাস, পৌরাণিকরা যে কতটা অন্ধ আসুন তা দেখি একটু, মহর্ষি দয়ানন্দ যেখানে  উক্ত বাক্যটি লিখেছে তার আগে যে শতপথ ব্রাহ্মণ এর প্রমাণ দিয়েছে সেটা তাদের চোখে একটুও পড়েনি!

সত্যার্থ প্রকাশ অষ্টম সমুল্লাস



एतेषु हीदं सर्वं वसु हितमेते हीदं सर्वं वासयन्ते तद्यदिदं सर्वं वासयन्ते तस्माद्वसव इति।। शतपथब्राह्मण १४/६/७/४


এই সমস্ত স্থানই সকল জীব বা প্রজাকে বাস করিয়ে থাকে বলে এদের নাম হলো বসু যেমন -পৃথিবী, জল, অগ্নি, বায়ু, সূর্য, নক্ষত্র, চন্দ্র, আকাশ এই আট প্রকারের বসু, আমাদের ৩৩ প্রকারের দেবতার মধ্যে এই আটটি দেবতাকে বসু বলা হয়। পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দকে ভুল বলতে গিয়ে ব্রাহ্মণ শাস্ত্রকেই ভুল বলেই ছাড়লো! এই হচ্ছে পৌরানিকদের নিম্নগামী বুদ্ধি। আমাদের রাহুল আর্য দাদাও এই অপপ্রচারের বিরুদ্ধে একটা ভিডিও তৈরি করেছিল সেই ভিডিও টি দেখে নেবেন অবশ্যই এই লিঙ্ক থেকে 👇

https://youtu.be/A8hhSXL2z2w


মহর্ষি দয়ানন্দজী শতপথ ব্রাহ্মণের প্রমাণ দিয়ে আটটি বসুর মধ্যে জীব বসবাস করা সম্পর্কে কথন করেছে, আমাদের জানতে হবে যে ব্রাহ্মণ শাস্ত্র কি, ব্রাহ্মণ শাস্ত্র হলো বেদের প্রথম ব্যাখ্যা, ঋগ্বেদের ব্যাখ্যা গ্রন্থ হলো ঐতরেয় ব্রাহ্মণ, যজুর্বেদের ব্যাখ্যা শাস্ত্র হলো শতপথ ব্রাহ্মণ, সামবেদের ব্যাখ্যা শাস্ত্র তাণ্ড‍্য ব্রাহ্মণ, আর অথর্ববেদের ব্রাহ্মণ শাস্ত্রের নাম গোপথ ব্রাহ্মণ। এই প্রতিটি ব্রাহ্মণ শাস্ত্রই বৈজ্ঞানিক গ্ৰন্থ, এই ঐতরেয় ব্রাহ্মণ লেখেন মহর্ষি মহিদাস ঐতরেয় প্রায় আজ থেকে প্রায় ৬০০০ বছর আগে, হাজার হাজার বছর পর এই ঐতরেয় ব্রাহ্মণের প্রথম প্রকৃত ভাষ্য করলেন আমাদের আর্যসমাজের আচার্য্য অগ্নিব্রত নৈষ্টিক জী।আপনারা অবাক হয়ে যাবেন এই ঐতরেয় ব্রাহ্মণের মধ্যে বৈজ্ঞানিক তত্ত্ব সম্পর্কে জানলে, আচার্য নৈষ্টিকজী এই ঐতরেয় ব্রাহ্মণের ভাষ্য গ্রন্থটির নাম দিয়েছে 'বেদ বিজ্ঞান আলোক' । এই গ্ৰন্থ দ্বারা আধুনিক কথিত বিজ্ঞানের অনেক যুক্তিহীন ভ্রান্তি যেমন বিবর্তনবাদ, কথিত বিগ ব্যাং, ব্ল্যাক হোল আদি নানান ভ্রান্তিকে খণ্ডন করা হয়েছে এবং সঠিক কোনটা সেটাও তুলে ধরা হয়েছে বৈদিক শাস্ত্র দ্বারা।

আচার্য নৈষ্টিকজী বৈদিক শাস্ত্র দ্বারা এক তত্ত্ব দিয়েছেন যাহার নাম 'বৈদিক রশ্মি থিওরি' এই তত্ত্ব দ্বারা আমাদের বৈদিক সৃষ্টি তত্ত্ব তুলে ধরা হয়েছে। আধুনিক পদার্থ বিজ্ঞান অনুসারে এখন 'কোয়ার্ক' সবচেয়ে সূক্ষ্ম কণা হিসেবে মান্য করা হয়, কিন্তু এই কোয়ার্ককেও ইটারনাল অর্থাৎ অনাদি মনে করা হয় না, মনে করা হয় যে কোয়ার্কও ধ্বংস হয়, এই কোয়ার্কের চেয়ে সূক্ষ্ম কোনো কণা আছে কিনা তা এখনো আধুনিক বিজ্ঞান জানতে পারেনি। কিন্তু আচার্য নৈষ্টিকজী বলেছেন যে আমাদের বৈদিক শাস্ত্রে এই কোয়ার্কের থেকেও আরও ছোটো পাঁচটি সূক্ষ্ম পদার্থ পাওয়া গেছে। বৈদিক পদার্থবিদ্যা অনুযায়ী প্রথম সূক্ষ্ম পদার্থের নাম 'মূল প্রকৃতি' এই মূল প্রকৃতি হলো ইটারনাল অর্থাৎ অনাদি সত্ত্বা, এই মূলপ্রকৃতি সৃষ্টিও হয়না ধ্বংসও হয়না আর না ইহাকে ঈশ্বর তৈরি করেছে। আমাদের বৈদিক শাস্ত্র অনুযায়ী তিন তত্ত্বকে অনাদি মান্য করা হয় যেমন - পরমাত্মা, জীবাত্মা এবং প্রকৃতি। পরমাত্মা হলো সর্বব্যাপক এক অদৃশ্য চেতন শক্তি, জীবাত্মা হলো এক একদেশীয় অদৃশ্য চেতন শক্তি, আর প্রকৃতি হলো জড় পদার্থ, এই তিন সত্ত্বার দ্বারা এই জগৎ তৈরি হয়েছে।পরমাত্মা হলেন এই জগতের নিমিত্তকারণ, জড় প্রকৃতি হলো উপাদান কারণ এবং জীবাত্মা হলেন সাধারণ কারণ। কেউ যদি বলে যে জড় মূল প্রকৃতিকে কি ঈশ্বর সৃষ্টি করেনি, না পরমাত্মা কখনই প্রকৃতিকে সৃষ্টি করেনি কিন্তু প্রকৃতি নামক উপাদান দ্বারা পরমাত্মা এই স্থূল জগৎ সৃষ্টি করেছেন, মহর্ষি দয়ানন্দজী এই বিষয়টি বিস্তার ভাবে সত্যার্থ প্রকাশে বৈদিক শাস্ত্র দ্বারা তুলে ধরেছে। এই অনাদি জড় মূল প্রকৃতি দ্বারা সর্বব্যাপক পরমেশ্বর প্রথমে ওঁ রশ্মি তৈরি করেন, ওঁ রশ্মির দ্বারা তৈরি হয় মহত্তত্ব, মহত্তত্ব থেকে মনসতত্ত্ব, এই মনসতত্ত্ব থেকে তৈরি হয় সূক্ষ্ম প্রাণ রশ্মি এবং মরুত রশ্মি, তারপর তৈরি হয় ছন্দরশ্মি তৈরি, তারপর কোয়ার্ক, প্রোটন, নিউক্লিয়াস, এটম, অনু তৈরি হয় আর পরমাত্মা এইভাবেই অনু হতে নানান স্থূল পদার্থ তৈরি করতে করতে জগৎ তৈরি করে।



বেদ হলো সকল জ্ঞানের মূল আর এই বেদের মধ্যেই একমাত্র সৃষ্টি সম্পর্কে সঠিক তত্ত্ব থাকা সম্ভব আর কোথাও নয়, আর তা  প্রমাণ করে দিল আচার্য নৈষ্টিক জী। এইবার আসল কথায় আসি যে ঐতরেয় ব্রাহ্মণ যেমন  বৈজ্ঞানিক গ্ৰন্থ ঠিক এই প্রকারে শতপথ ব্রাহ্মণও এক বৈজ্ঞানিক গ্রন্থ। শতপথ ব্রাহ্মণে যে সকল বসুর মধ্যে জীবের বসবাসের কথা বলেছে সে সেটি কতটি সত্য হতে পারে তা আসুন দেখি, ভিন্ন গ্রহে জীবের সম্পর্কে তো অনেকেই অনেক জায়গায় শুনেছেন, অনেক বৈজ্ঞানিকরা স্বীকার করেন যে পৃথিবী হতে ইতর অসংখ্য গ্রহে জীব থাকা সম্ভব কিন্তু আমি সেই সমস্ত জায়গায় গিয়ে ওই সমস্ত বৈজ্ঞানিকদের মত প্রকাশ আপনাদের জানাবো না, আজ তো সকলের 'নাসা'  এর বৈজ্ঞানিক পরিক্ষা কে স্বীকার করে তাই আমি আপনাদের সেই নাসার অফিসিয়াল ওয়েবসাইট থেকে এক তত্ত্ব দিতে চায় - নাসার দুই বিজ্ঞানী  কেন ও গেলিনো, এই দুই বিজ্ঞানী ২০১২ সালে উক্ত বিষয়ে পরীক্ষা করেন, এবং সে পরীক্ষায় পর তারা কি বলেছে তা দেখুন, নাসার অফিসিয়াল ওয়েবসাইট লিঙ্ক থেকে👇

https://www.nasa.gov/topics/universe/features/universe20120911.html


এই দুই বিজ্ঞানী কি বলেছে তা আমি এখানে পুনরায় তুলে ধরলাম দেখুন______


"Astronomers have discovered a veritable rogues' gallery of odd exoplanets -- from scorching hot worlds with molten surfaces to frigid ice balls.

And while the hunt continues for the elusive "blue dot" -- a planet with roughly the same characteristics as Earth -- new research reveals that life might actually be able to survive on some of the many exoplanetary oddballs that exist.

"When we're talking about a habitable planet, we're talking about a world where liquid water can exist," said Stephen Kane, a scientist with the NASA Exoplanet Science Institute at the California Institute of Technology in Pasadena. "A planet needs to be the right distance from its star -- not too hot and not too cold." Determined by the size and heat of the star, this temperature range is commonly referred to as the "habitable zone" around a star.

Kane and fellow Exoplanet Science Institute scientist Dawn Gelino have created a resource called the "Habitable Zone Gallery." It calculates the size and distance of the habitable zone for each exoplanetary system that has been discovered and shows which exoplanets orbit in this so-called "goldilocks" zone. The Habitable Zone Gallery can be found at www.hzgallery.org . The study describing the research appears in the Astrobiology journal and is available at http://arxiv.org/abs/1205.2429 .

But not all exoplanets have Earth-like orbits that remain at a fairly constant distance from their stars. One of the unexpected revelations of planet hunting has been that many planets travel in very oblong, eccentric orbits that vary greatly in distance from their stars.

"Planets like these may spend some, but not all of their time in the habitable zone," Kane said. "You might have a world that heats up for brief periods in between long, cold winters, or you might have brief spikes of very hot conditions."

Though planets like these would be very different from Earth, this might not preclude them from being able to support alien life. "Scientists have found microscopic life forms on Earth that can survive all kinds of extreme conditions," Kane said. "Some organisms can basically drop their metabolism to zero to survive very long-lasting, cold conditions. We know that others can withstand very extreme heat conditions if they have a protective layer of rock or water. There have even been studies performed on Earth-based spores, bacteria and lichens, which show they can survive in both harsh environments on Earth and the extreme conditions of space."

Kane and Gelino's research suggests that habitable zone around stars might be larger than once thought, and that planets that might be hostile to human life might be the perfect place for extremophiles, like lichens and bacteria, to survive. "Life evolved on Earth at a very early stage in the planet's development, under conditions much harsher than they are today," Kane said.

Kane explained that many life-harboring worlds might not be planets at all, but rather moons of larger, gas-giant planets like Jupiter in our own solar system. "There are lots of giant planets out there, and all of them may have moons, if they are like the giant planets in the solar system," Kane says. "A moon of a planet that is in or spends time in a habitable zone can be habitable itself."

As an example, Kane mentioned Titan, the largest moon of Saturn, which, despite its thick atmosphere, is far too distant from the sun and too cold for life as we know it to exist on its surface. "If you moved Titan closer in to the sun, it would have lots of water vapor and very favorable conditions for life."

Kane is quick to point out that there are limits to what scientists can presently determine about habitability on already-discovered exoplanets. "It's difficult to really know about a planet when you don't have any knowledge about its atmosphere," he said. For example, both Earth and Venus experience an atmospheric "greenhouse effect" -- but the runaway effect on Venus makes it the hottest place in the solar system. "Without analogues in our own solar system, it's difficult to know precisely what a habitable moon or eccentric planet orbit would look like."

Still, the research suggests that habitability might exist in many forms in the galaxy -- not just on planets that look like our own. Kane and Gelino are hard at work determining which already-discovered exoplanets might be candidates for extremophile life or habitable moons. "There are lots of eccentric and gas giant planet discoveries," Kane says. "We may find some surprises out there as we start to determine exactly what we consider habitable."

NASA's Exoplanet Science Institute at Caltech manages time allocation on the Keck Telescope for NASA. NASA's Jet Propulsion Laboratory in Pasadena, Calif., manages NASA's Exoplanet Exploration program office. Caltech manages JPL for NASA. More information about exoplanets and NASA's planet-finding program is at http://planetquest.jpl.nasa.gov .



এই দুই বিজ্ঞানী যে প্রকারের আবহাওয়াতে জীব থাকা সম্ভব সেই প্রকারের প্রাণী আমাদের এই পৃথিবীতেই রয়েছে যার নাম হলো 'টারডিগ্রেড' এই জীবটির সম্পর্কে জানলে আপনারা অবাক হয়ে হবেন।

টারডিগ্রেড


 ১৭৭৩ সালে Johann August Ephraim Goeze নামের এক জার্মানি বিজ্ঞানী এই টারডিগ্রেড নামক প্রাণীটির সর্বপ্রথম খোঁজ পান, এটি বিশ্বের সব চেয়ে ছোটো জীব গুলোর মধ্যে একটি, অতি সূক্ষ্ম হওয়ার কারণে মাইক্রোস্কোপ ছাড়া খালি চোখে দেখা যায়না, বিশেষ করে এই টারডিগ্রেড নামক প্রাণীটি জলে বাস করে কিন্তু এই প্রাণী প্রায় সমস্ত জায়গায় থাকতেও সক্ষম। আমরা জানি যে জল ছাড়া কোনো জীব বাঁচতে পারেনা কিন্তু আপনি কি জানেন যে এই প্রাণীটি জল ছাড়া এবং কোনো রকমের খাদ্য ছাড়া ২৫-৩০ বছর পর্যন্ত জীবিত থাকতে পারে, এই প্রাণীটি মহাকাশেও পর্যন্ত সুন্দর ভাবে জীবিত থাকতে পারে।  আর এক আশ্চর্য্য বিষয় হলো যে এই  টারডিগ্রেড
এই জীবটি প্রায় মাইনাস ২০০℃ শীতলেও বেঁচে থাকতে সক্ষম আবার  প্রায় ৮০০℃ উত্তাপেও বেঁচে থাকতে শুনে অবশ্য সবাই আশ্চর্য্য হবেন কিন্তু এটাই বাস্তব!



জেনে নিন এই জীবটি সম্পর্কে ইংরেজী উইকিপিডিয়ার থেকে 👇

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Tardigrade

এবং বাংলায় থেকে 👇

https://bn.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A6%9F%E0%A6%BE%E0%A6%B0%E0%A6%A1%E0%A6%BF%E0%A6%97%E0%A7%8D%E0%A6%B0%E0%A7%87%E0%A6%A1


এই জীব জল ছাড়া,  প্রচণ্ড গরমেও কোনো ধরনের খাদ্য না খেয়ে এই জীব বেঁচে প্রায় ৩০ বছর জীবিত থাকতে পারে, যা সবার ধারণার বাইরে কারণ এই অবস্থায় পৃথিবীর অন্য কোনো জীব বেঁচে থাকার সম্ভব নয়, যদি এই জীবের সন্ধান না পাওয়া যেতো তাহলে কেউ জানতেও পারতো না যে এমন চরম অবস্থাতেও কোনো প্রাণী বসবাস করতে পারে।  প্রায় ৮০০℃ উত্তাপেও যদি এই টারডিগ্রেড নামক জীব টি বেঁচে থাকতে পারে তাহলে কেন বিশ্বাস করা যাবেনা যে সূর্যের মধ্যে এর থেকেও বেশি আশ্চর্য্য ধরণের জীব থাকতে পারে ?  আজ থেকে প্রায় ২৩০০ বছর আগে যখন ভারত বাদে বিশ্বের সমস্ত জায়গায় লোকেরা বিশ্বাস করতো যে সূর্য পৃথিবীর চারদিকে ঘোরে, কেউ বলে পৃথিবীর থেকে সূর্য ছোটো আদি আদি সেই সময় জ্যোতিবিজ্ঞানী বরাহ মিহির 'সূর্যসিদ্ধান্ত' গ্রন্থ লিখে গেছেন যাহার মধ্যে সমস্ত সূর্য, চন্দ্র, গ্রহ, নক্ষত্র বিষয়ে গ্রহণ আদি সমস্ত কিছু বলে গেছেন। জ্যোতিবিজ্ঞানী আর্যভট্ট সম্পর্কে আমার হিন্দু ভাইরা সবাই জানে তাই বলার কিছু নেই। ডালটন  এর পরমাণু বাদ সম্পর্কে বলেন এই তো প্রায় ২০০ বছর হলো কিন্তু মহর্ষি কণাদ আজ থেকে কয়েক হাজার বছর আগে  সর্ব প্রথম পরমাণুর কথা বলেন বৈশেষিক দর্শনে। দেখুন এই হলো আমাদের বৈদিক শাস্ত্র যাহারা, সমস্ত জ্ঞানের মূল হলো বেদ এইটা আমরা বিশ্বাস করি এবং ইহার শতশত যুক্তি তর্ক প্রমাণ ও আছে আমাদের কাছে। আমাদের এই মহান বিজ্ঞানী ঋষি, মহর্ষিরা যখন বলে গেছে সমস্ত বসুর মধ্যে জীব বসবাস করে তাহলে আমরা কেন মেনে নিতে পারবোনা তাদের কথা ? এখন কোনো পৌরানিক ভাই ত্যানা পেছানোর জন্য বলতে পারে যে-  'হা আমি শতপথ ব্রাহ্মণের কথা মেনে নিলাম যে সমস্ত বসুর মধ্যে জীব বসবাস করে, কিন্তু দয়ানন্দজী বলেছে যে সূর্যের মধ্যে মনুষ্য বসবাস করে, এইটার কি হবে' ? আমি তাদের উত্তরে বলতে চাই যে মহর্ষি দয়ানন্দজী ওখানে মনুষ্য শব্দটি শুধু মাত্র আমাদের সাদৃশ্যের শরীরধারী মনুষ্যের তাৎপর্যে ব্যবহার করা হয়নি, কারণ মহর্ষি জী ভালো করেই জানতেন যে সূর্যে কখনোই আমাদের মতো মনুষ্য বেঁচে থাকতে পারবে না, ইহার এক প্রমাণ আমি সত্যার্থ প্রকাশ থেকেই দিচ্ছি দেখুন______


সত্যার্থ প্রকাশ, দ্বাদশ সমুল্লাস, জৈনমতে জম্মুদ্বীপ আদি বিস্তার


মহর্ষি দয়ানন্দজী সত্যার্থ প্রকাশে জৈনদের  মতের সমীক্ষা করছেন, তিনি বলছেন যে- "দেখো সকল ভাইরা! এই পৃথিবীতে ১৩২ টি সূর্য এবং ১৩২ টি চন্দ্র জৈনদের ঘর কে উত্তাপ দিয়ে থাকে! ভালো তাহারা যখন এই ভাবে উত্তাপ পায় তাহলে তারা জীবিত থাকে কিভাবে ? রাতের বেলা হয়তো তাহারা জমিয়ে বরফ হয়ে যায়। যাহারা ভূগোল, খগোল সম্পর্কে অজ্ঞ তাহারাই এমন অসম্ভব কথা বিশ্বাস করে, যখন একটি মাত্র সূর্য আমাদের পৃথিবীর সাদৃশ্যে অন্যান্য ভূমণ্ডল কে প্রকাশিত করে তাহলে এই সামান্য পৃথিবীর কথা কি বলতে হবে"। মহর্ষি দয়ানন্দ জী এই জৈনদের সমীক্ষায় আরও বলেছে - "আপনাদের সৌভাগ্য যে আপনারা বেদানুকূল সূর্যসিদ্ধান্ত আদি জ্যোতিষ শাস্ত্রের গ্রন্থ অধ্যায়ন করে ভূগোল, খগোল সম্পর্কে যথার্থ জানতে পেরেছেন নয়তো যদি আপনারা জৈনদের মতে আচ্ছন্ন থাকতেন তাহলে আজ যেরূপ জৈনরা অন্ধকারে আছে ঠিক এই প্রকারে অন্ধকারে আজীবন থাকিতেন"। মহর্ষি দয়ানন্দজী এখানে 'মনুষ্য' শব্দ সেই অর্থে বলেছে যে মহর্ষি যাস্ক মনুষ্যের পরিভাষা করেছেন, মহর্ষি যাস্ক বলেছেন যে -'मनुष्यः कस्मात् मत्वा कर्माणि सीव्यति' निरूक्त ३/७ অর্থাৎ 'যে বিচার পূর্বক কর্ম করে সে হলো মনুষ্য' নিরুক্ত ৩/৭। ইহার দ্বারা বোঝা যায় যে জীব বিচার পূর্বক কর্ম করার ক্ষমতা রাখে তাহাকে মনুষ্য বলা হয় তাই মনুষ্য মানে এইটা ধরে নেওয়া ভুল হবে যে মনুষ্য মানে শুধুমাত্র আমাদের সাদৃশ্যে শরীরধারী হবে, মহর্ষি দয়ানন্দ তার লিখা 'আর্যোদ্দেশ্য রত্নমালা' গ্রন্থের মধ্যেও মনুষ্যের সংজ্ঞা এমনই দিয়েছে 'যে বিচার বিবেচনা না করে কোনো কর্ম করেনা তাকেই মনুষ্য বলা হয়'। ঠিক এই রূপেও ऋग्वेद १०/५३/६ 'मनुर्भव' অর্থাৎ 'মানুষ হও' ঋগ্বেদ ১০/৫৩/৬।তাই পৌরানিকরা যেই ত্যানা পেঁচানোর চেষ্ঠা করুক তা পেঁচানো কোনো কাজের দেবেনা। মহর্ষি দয়ানন্দজী যখন যেখানে যেখানে প্রবচন দিতে যেতেন সেখানে অবশ্যই মাঝে মাঝে বলতেন যে - আমাদের দেশে এমন এক যন্ত্র ছিল যাহার মাধ্যমে মানুষ পাখির মতো উড়তে পারে, আরও বলতেন যে মহাভারতের যুদ্ধের সময় অনেক প্রযুক্তি বিদ্যা ধ্বংস হয়ে গেছে, আরও বলতো যে রামায়ণের সময় এক বিমান ছিল যাহার নাম পুষ্পক বিমান , মহর্ষি দয়ানন্দ সত্যার্থ প্রকাশের একাদশ সমুল্লাসে রামেশ্বর সমীক্ষা তে বলেন যে এই রামেশ্বরে থাকা শিব লিঙ্গতে  শ্রীরাম কখনোই পূজা করেনি এবং সেটি মিথ্যা, কারণ শ্রীরাম যুদ্ধের পর  আকাশ পথে বিমানে  লঙ্কা থেকে অযোধ্যায় ফিরেছিল।


মহর্ষি দয়ানন্দজী তার লিখা 'ঋগ্বেদাদী ভাষ্য ভূমিকা' নামক গ্রন্থে বিমান বিদ্যা সম্পর্কে একটা অধ্যায় লিখেছেন কিন্তু সূত্র আকারে। মহর্ষি দয়ানন্দ তার ঋগ্বেদ এবং যজুর্বেদ ভাষ্যের বহু মন্ত্রে বিমান বিদ্যার কথা বলেছে। তো যখন মহর্ষি দয়ানন্দজীর এইরূপ বিমান যানের কথা বলতো তখন তার কথা শুনে পৌরাণিক আবালদের মতো শত শত আবলরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে পাগল বলতো মূর্খ বলতো। কারণ তারা কল্পনা করতেও পারেনি যে এমন যান আবিষ্কার হতে পারে। মহর্ষি দয়ানন্দ আমাদের ছেড়ে চলে গেলেন ১৮৮৩ সালে,  কিন্তু ১৮৯৫ সালে শিবকর বাপুজি তালপাড়ে আধুনিক বিশ্বে সর্বপ্রথম বিমান তৈরি করেছিলেন। শিবকর বাপুজি তালপাড়ে জীর বিমান বানানোর খুব রুচি ছিল তাই তার গুরু চিরঞ্জিলাল বর্মা মহর্ষি দয়ানন্দ এর লিখা ঋগ্বেদাদি ভাষ্য ভূমিকা, ঋগ্বেদ ভাষ্য, যজুর্বেদ ভাষ্য এবং মহর্ষি ভরদ্বাজ জীর বিমান শাস্ত্র পড়তে বলেন ইহার পর শিবকর বাপুজি তালপাড়ে সর্ব প্রথম বিমান তৈরি করেন। শিবকর বাপুজির উইকিপিডিয়ার 👇

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Shivkar_Bapuji_Talpade

কথায় আছে কিনা যে কুয়ার ব্যাঙ ভাবে যে তার  কুয়োই মধ্যে যা যা দেখতে পায় সেগুলোকেই কুয়োর ব্যাঙরা জগৎ মনে করে  আর ভাবে যে তাদের কুয়োর বাইরে কিছু নেই তেমনি অবস্থা হলো এখনকার কিছু মূর্খ অবিদ্যার অন্ধকারে থাকা কিছু প্রাণী যাদের কোনো যোগ্যতা নেই, মাথায় নেই কোনো যুক্তি তর্ক জ্ঞান বিজ্ঞান, যাহাদের মান্যতা দেখলে মনে হয় যে ইহার মাথায় মগজের জায়গায় নিশ্চিতরূপে বরাহের বিষ্ঠা আছে সেই সমস্ত প্রাণীরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে নিয়ে উপহাস করে। ওরে শোন তোদের সমস্ত গুরুর যোগ্যতা মহর্ষি দয়ানন্দ এর পায়ের ধুলোর যোগ্যতার সমানও নয় । 


আমি আমার সমস্ত আর্য ভাইদের অনুরোধ করবো যে আপনারা এই পোষ্টটি সেই সমস্ত আবালদের কাছে পৌঁছে দিন যারা দিনে রাতে মহর্ষি দয়ানন্দ কে নিয়ে অপপ্রচার করে, গালি দেয়, সেই সমস্ত আবালদের যদি লজ্জা বলে কিছু থাকে তাহলে কোনোদিন এমন অপপ্রচার করবে না!

নমস্তে




অবতারবাদ

                                  অবতারবাদ


আমরা সকলে জানি যে +১৮ পুরাণ কাহিনী বৈদিক মনে হলেও বাস্তবে অবৈদিক গ্রন্থ, এই সকল গ্রন্থে সনাতন ধর্মের নানান মহাপুরুষদের অপমান ও কুলষিত করা হয়েছে। এই সমস্ত পুরাণ গুলো এক পুরাণ আর এক পুরাণের বিরোধী, তা আসুন আজ আলোচনা করি অবতার সম্পর্কে। আমাদের বৈদিক শাস্ত্রে অবতারবাদের কোনো স্থান নেই, এই অবতারবাদ একটি নবীন মত, যা কথিত ১৮+ কথিত পুরাণ কাহিনী থেকে এসেছে। শুধুমাত্র যজুর্বেদের ৪০ অধ্যায়ের ৮ নং মন্ত্রটিই অবতারবাদ, সাকারবাদ আদি মতকে খণ্ডন করে দেয়__

সঃ পর্য়গাত শুক্রম্ অকায়ম্ অব্রণম্ অস্নাবিরম্ শুদ্ধম্ অপাপবিদ্ধম্ কবিঃ মনীষী পরিভূঃ স্বয়ম্ভূঃ য়াথাতথ‍্যতঃ অর্থান্ ব‍্যদধাত্ শাশ্বতীভ‍্যঃ সমাভ‍্যঃ।

ব্রহ্ম সর্বশক্তিমান্, স্থূল-সূক্ষ্ম এবং কারণ হতে রহিত, ছিদ্র রহিত, নাড়ি আদি বন্ধন হতে রহিত, অবিদ্যা আদি দোষ রহিত হওয়াতে শুদ্ধ, পাপরহিত, সর্বব্যাপক, সর্বজ্ঞ, মনীষী, দুষ্ট দমনকারী, অনাদি স্বরূপ যুক্ত, সনাতন। 

যজুর্বেদ ৪০/৮

ঈশ্বর নিরাকার সে কখনোই নাড়ি আদি বন্ধনে আসেনা, আসুন ঈশ্বরের গুণ বিষয়ে আরও কিছু শাস্ত্রীয় প্রমাণ দেখি__


অপাণিপাদো জবনো গ্রহীতা পশ‍্যত‍্যচক্ষুঃ স শৃণোত‍্যকর্ণঃ।
স বেত্তি বিশ্বং ন চ তস‍্যাস্তি বেত্তা তমাহুরগ্রথং পুরুষং মহান্তম্।।

পরমেশ্বরের হাত নেই, পরন্তু তিনি নিজ শক্তিরূপ হস্ত দ্বারা সমস্ত কিছুর রচনা ও গ্রহণ করেন। তার পা নেই পরন্তু তিনি সর্বব্যাপক বলে সর্বাধিক বেগবান। তার চক্ষু নেই পরন্তু তিনি সমস্ত কিছু দর্শন করেন। শ্রোত্র নেই পরন্তু তিনি সকল কথন শ্রবণ করেন। তার অন্তঃকরণ নেই, পরন্তু তিনি সমস্ত জগৎ কে জানেন। তাকে সম্পূর্ণ রূপে জানতে পারে এমন কেউ নাই। সেই পরমেশ্বর কে পুরুষ বলা হয়ে থাকে।।

শ্বেতাশ্বতর উপনিষদ ৩/১৯

যাকে চক্ষু দ্বারা দেখা যায়না, কিন্তু যার দ্বারা চক্ষু দেখতে পায়, তাকেই ব্রহ্ম বলে জানো, তারই উপাসনা কর।  আর যা ব্রহ্ম হতে ভিন্ন সূর্য-অগ্নি আদি জড় পদার্থ আছে, তাদের উপাসনা করো না।

কেন উপনিষদ ১/৬ 

যে ব্রহ্ম দীপ্তমান যে সূক্ষ্ম হতে অতি সূক্ষ্ম, যার মধ্যে সমস্ত জগৎ এবং তার মধ্যে নিবাসকারী সমস্ত প্রাণী স্থিত রয়েছে তিনি হলেন অক্ষর (ক্ষয় রহিত) ব্রহ্ম। 

মুণ্ডক উপনিষদ ২/২/২

নানান শাস্ত্রীয় প্রমাণ অনুযায়ী বলা যায় যে ঈশ্বর বা পরমাত্মা কোনো দেহধারী পদার্থ নয় অথবা কোনো দেহধারী জীব জন্তু পরমাত্মা নয়, তাই ঈশ্বরের দেহধারণে বিশ্বাসী হওয়া আর বন্ধ্যার সন্তান দর্শন করা একই ব্যাপার। কিছু সনাতনী বন্ধুরা এমন রয়েছে যারা বেদ, উপনিষদ আদি শাস্ত্রের বিকৃত ব্যাখ্যা থেকে ঈশ্বরের ধারণের প্রমাণ দেখাতে প্রস্তুত থাকে, কারণ যত পৌরাণিক টীকাকার রয়েছে তারা ঈশ্বরের সাকার রূপের বর্ণনা করেছে নানান শাস্ত্রগ্রন্থে কিন্তু তাদেরকে যদি সাকার ঈশ্বর বিষয়ে তার্কিক প্রশ্ন করা হয় তখন তারা উত্তর দিতে পারে না, কারণ তাদের মান্যতা যে মিথ্যা। মুসলিমরা কুরআন থেকে দেখাবে আল্লাহ স্রষ্টা এদিকে পৌরানিকরা দেখাবে পুরাণ থেকে যে শিব ঈশ্বর, কৃষ্ণ ঈশ্বর আবার খ্রিস্টানরা বাইবেল থেকে দেখাবে গডই স্রষ্টা। এইবার কোনটা সত্য বলে মানবেন ? যে কোনো শাস্ত্র বা কুরআন হোক বা বাইবেল হোক বা পুরাণ কাহিনীই হোক না কেন, আপনি আপনার প্রামাণ্য গ্রন্থ থেকে যে দাবিটি করবেন তার মধ্যে যদি কোনো সত্যতা, যুক্তি, ভিত্তি না থাকে তাহলে সেটা কোনো বুদ্ধিমান মনুষ্যের কাছে গ্রহণ যোগ্য নয়, কিন্তু মূর্খের কাছে গ্রহণ যোগ্য হতে পারে। হাজারো বছর পর ঋষি দয়ানন্দ সরস্বতীই এমন ব্যক্তি যিনি তার্কিক ভাবে বেদানুকূল শাস্ত্র কে সমাজে তুলে ধরেছেন এবং সকল পক্ষপাতি, মূর্খতা পূর্ণ মতবাদ গুলোর খণ্ডন করেছেন। এইবার মূল কথায় আসি যে, আমরা যদি কোনো বৈদিক শাস্ত্রের কোনো প্রমাণ ছাড়াই শুধুমাত্র তর্কের মাধ্যমে অবতার বাদ সম্পর্কে আলোচনা তবুও অবতারবাদ মিথ্যা হয়ে যায়, আসুন দেখি___ 

আমরা জানি যে পৌরানিকদের ভগবান বিষ্ণুর ১০ অবতার রয়েছে। কিন্তু দুঃখের বিষয় পৌরণিকদের শ্রেষ্ঠ ধর্মগ্রন্থ ভাগবত পুরাণ অনুযায়ী অবতারের সংখ্যা ২২টি  আবার ২৫ টিও বলা যায় কারণ ভাগবত পুরাণ ১/৩/৬ অনুযায়ী সনক, সনন্দন,সনাতন ও সনৎকুমার এই চারজনকে প্রথম অবতার হিসেবে ধরা হয়েছে, আর থাকলো ২১ টি অবতার অর্থাৎ ৪+২১= ২৫। এই ভাগবত পুরাণের লীলা দেখুন আর মন খুলে সকলে হাসুন। এবার বাদবাকি ২১ টি অবতারের নাম গুলো দেখে নেওয়া যাক- ২) বরাহ, ৩) দেবর্ষি নারদ, ৪) নরনারায়ণ, ৫) কপিল, ৬) অত্রিমুনির পুত্র দত্তাত্রেয়, ৭) রুচি নামক প্রজাপতির পত্নী আকূতির সন্তান যজ্ঞ,  ৮) ঋষভদেব, ৯) পৃথুরাজা, ১০) মৎস, ১১) কূর্ম, ১২) ধন্বন্তরি, ১৩) মোহিনী, ১৪) নৃসিংহ, ১৫) বামন, ১৬) পরশুরাম, ১৭) সত্যবতীর সন্তান ব্যাস, ১৮) রাম, ১৯) শ্রীকৃষ্ণ, ২০) বলরাম, ২১) বুদ্ধ, ২২) কল্কি।  ভাগবত পুরাণ প্রথম স্কন্ধ/ তৃতীয় অধ্যায়/ ৬-২৫ শ্লোক পর্যন্ত এই বিষয়ে আলোচনা করা হয়েছে। 

এই অধ্যায়ের ২৮  শ্লোক অনুযায়ী অসুরদের অত্যাচারে মনুষ্যরা যখন পীড়িত হয় তখন ভগবান যুগে যুগে নানান রূপ ধারণ করে তাদের রক্ষা করেন অর্থাৎ যখন যখন অধর্মের বৃদ্ধি পেয়েছে তখন তখন অবতার এসেছে। শুয়োর, মাছ, কচ্ছপ, নরসিংহ আদি এই সকল অবতারের নাম শুনে যেকোনো অন্ধবিশ্বাস রহিত সাধারণ বুদ্ধির ব্যক্তিরা বলতে সক্ষম হবে যে এই ভাগবত পুরাণ কোনো ঋষির লেখা গ্রন্থ হতেই পারেনা বরং কোনো বোকা ব্যক্তির লেখা। এখানে আর একটি মজার বিষয় দেখুন, শ্রীরাম কে ১৮ তম অবতার বলা হয়েছে কিন্তু ব্যাসদেব কে ১৭তম অবতার বলা হয়েছে অর্থাৎ শ্রীরামের আগে জন্ম হয়েছিল সত্যবতীর সন্তান ব্যাসদেব! 

                                                 ভাগবত পুরাণ ১/৩/২১-২২

ভাগবতের লেখক কি খেয়ে ভাগবত লিখেছে তা বলা মুশকিল। পৌরাণিক বৈষ্ণবরা চৈতন্য কে শ্রীকৃষ্ণের অবতার বিশ্বাস করে, কিন্তু দুঃখের বিষয় ভাগবত পুরাণে চৈতন্য অবতারের কোনো স্থান পায়নি। এই পুরাণ অনুযায়ী কলিতে দুইটি অবতার বুদ্ধ ও কল্কি। 

                                  ভাগবত পুরাণ ১/৩/২৫


গীতার ৪/৭,৮ শ্লোকের ব্যাখ্যায় প্রায় সকল পৌরাণিক বলে থাকে যে, যখন যখন অধর্ম আসে এবং ধর্মের গ্লানি হয় তখন ভগবান অবতার হয়ে অধার্মিকদের ধ্বংস করে এবং ধর্মের স্থাপনা করে। যে সকল সনাতনী বন্ধুরা অবতারে খুবই বিশ্বাসী তারা নিজেই নিজেকে প্রশ্ন করুন যে, মহাভারতে যুদ্ধের সময় তিন তিনটি অবতার ছিল- ব্যাসদেব, শ্রীকৃষ্ণ এবং বলরাম কিন্তু আমাদের ভারতে যখন মুসলিম এবং খ্রিষ্টানরা প্রায় হাজার বছর ধরে অত্যাচার চালিয়েছিল তখন ধর্মের গ্লানি হওয়া সত্ত্বেও একটি মাত্র অবতার এসে অধর্ম কে ধ্বংস করে ধর্মের স্থাপনা করেনি কেন ? যখন সোমনাথ ও বিশ্বনাথ মন্দির ভেঙ্গে ফেলা হয়েছিল তখন কি ধর্মের গ্লানি হয়নি ? দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধের সময় ইচ্ছাকৃত ভাবে দুর্ভিক্ষ বানিয়ে যখন ২০ লক্ষেরও বেশি মানুষ কে হত্যা করা হয়েছিল [পঞ্চাশে মন্বন্তর] তখনও কি ধর্মের গ্লানি হয়নি ?  মহাভারতে সময় যে পরিমাণে ধর্মের গ্লানি হয়েছিল তার চেয়ে অনেক বেশি ধর্মের গ্লানি হয়েছিল তখন যখন ভারতে মুসলিম ও খ্রিস্টানরা শাসন চলছিল, কিন্তু একটি মাত্র অবতারের দেখা নাই!  এইসব প্রশ্নের উত্তর দিতে না পেরে অনেকেই বলতে পারেন যে ভগবান একটা নির্দিষ্ট সময়ে অবতার নেয় যেমন কলির শেষে কল্কি আসবে। যারা এমন মনস্কের  তাদের কাছে আমার প্রশ্ন এই যে, আপনাদের ভাগবত পুরাণে এবং আপনারাও গীতার ৪/৭,৮ শ্লোকে ব্যাখ্যায় বলেন যখন অধর্ম আসবে তখনই ভগবান অবতার রূপে আসেন। কিন্তু এখন নির্দিষ্ট সময় অনুসারে অবতার নেওয়ার কথা বলেন কোন তর্কের ভিত্তিতে বলেন ? সত্য ত্রেতা দ্বাপরে যে পরিমাণে অধার্মিক ছিল তার চেয়ে অনেক বেশি অধার্মিক এই কলিতে রয়েছে কিন্তু কলিতে মাত্র দুইটি অবতার  আর সত্য ত্রেতা দ্বাপরে ২০ টি অবতার। কলির শুরুতে বুদ্ধ আর কলির শেষে কল্কি কিন্তু কলির মাঝে  যে যে সময়ে অধর্ম হবে তার দায়িত্ব কি ঈশ্বরের নয় ? নাকি তার দায়িত্ব মুসলিমদের আল্লাহর আর খ্রিস্টানদের গডের ?  যে ঈশ্বর সকল জীব কে সমান ভাবে দেখেন সেই ঈশ্বর কে পক্ষপাতী বানিয়ে দিচ্ছে অবতারবাদী সনাতনীগণ! কারণ তাদের কাছে অবতারবাদ কে সত্য প্রমাণ করার জন্য যথার্থ যুক্তি তর্ক নেই। বর্তমান সময়ে সারা বিশ্বে জনসংখ্যা প্রায় ৬০০ কোটির বেশি, সনাতনী পৌরণিকদের সংখ্যা ধরে নিলাম ১৩০ কোটি, যদি সকল সনাতনীদের ধার্মিক হিসেবে ধরেও নেওয়া হয় তবুও ৪৭০ কোটির বেশি মানুষ অধার্মিক অর্থাৎ এখনও প্রচুর পরিমাণে ধর্মের গ্লানি হচ্ছে এবং অধর্মের বৃদ্ধি পাচ্ছে কিন্তু একটিমাত্র অবতারের দেখা নাই অর্থাৎ অবতার পক্ষপাতী! আর যারা চৈতন্য কে অবতার মনে করেন তাদের কাছে আমার প্রশ্ন চৈতন্য কোন অধর্ম কে ধ্বংস করে ধর্মের স্থাপনা করেছে ? চৈতন্যের সময়ে ভারতে মুসলিমদের শাসন চলছিল সেই সময় ধর্মের গ্লানি হওয়া সত্ত্বেও ভারত থেকে সকল মুসলিমদের ধ্বংস করে সনাতন ধর্ম কে পুরো ভারতে প্রতিষ্ঠা করতে পারেনি কেন চৈতন্য ? আমরা যদি বিনা বিচারে বিনা তর্কে যে কোনো সংস্কৃত গ্রন্থ কে ধর্ম গ্রন্থ হিসেবে মেনে চলি তাহলে আমরা জ্ঞানী হবো না বরং দিনের পর দিন মূর্খ হবো। 

ঋষি দয়ানন্দ গীতা ৪/৭ শ্লোকের খুবই ভালো ব্যাখ্যা দিয়েছেন -শ্রীকৃষ্ণ ধর্মাত্মা ছিলেন এবং তিনি ধর্মের রক্ষা করতে ইচ্ছা করেছিলেন। “আমি যুগে যুগে জন্মগ্রহণ করিয়া শ্রেষ্ঠদের রক্ষা এবং দুষ্টদেরকে বিনাশ করে থাকি”। এইরূপ হলে কোন দোষ নাই। কারণ ‘পরোপকারায় সতাং বিভূতয়ঃ’, সৎপুরুষদের দেহ মন-ধন পরোপকারের জন্য' [সত্যার্থ প্রকাশ, সপ্তম সমুল্লাস]। একজন ধর্মাত্মার এমন ইচ্ছা থাকতেই পারে যে তিনি অধর্ম কে ধ্বংস করার জন্য আসবেন, কিন্তু এই শ্লোকের অর্থ যদি ধরে নেওয়া হয় শ্রীকৃষ্ণ ঈশ্বর আর তিনি অধর্মের সময় বারবার নিশ্চিত আসবে তাহলে এই শ্লোকটি ভুল হয়ে যাবে।

নানান শাস্ত্রীয় প্ৰমাণ ও তার্কিক আলোচনার পর এই সিদ্ধান্তে আসা যায় যে অবতার বাদ সম্পূর্ণ একটি মিথ্যা কাল্পনিক বিশ্বাস মাত্র, এই বিশ্বাসে আমাদের সনাতনীদের অনেক ক্ষতি হয়েছে। ঋষি মনু বলেছেন- 

ধর্ম এব হতো হন্তি ধর্মো রক্ষতি রক্ষিতঃ।
তস্মাদ্ধর্মো ন হন্তব্যো মা নো ধর্মো হতঃ অবধীত্।।

যে ব্যক্তি ধর্ম কে নাশ করে, ধর্ম তাকেই বিনাশ করে। যে ধর্মকে রক্ষা করে, ধর্মও তাহাকে রক্ষা করে, এই জন্য ধর্ম ত্যাগ করা উচিত নয়। 

মনুস্মৃতি ৮/১৫

পরাধীন ভারতে সর্বপ্রথম স্বরাজের আওয়াজ তুলেছিল মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী, আর এই মহর্ষি দয়ানন্দজীর রাস্তা ধরেই স্বামী শ্রদ্ধানন্দ, লালা লাজপত, বালগঙ্গাধর, রামপ্রসাদ বিসমিল, চন্দ্রশেখর আজাদ, ভগত সিং, শ্যামজী কৃষ্ণ বর্মা, পন্ডিত লেখরাম, লালা হরদয়াল, সাভারকার আদি নানান বীর তৈরি হয়েছিল যারা ভারত কে স্বাধীন করার জন্য নিজেদের বলিদান করেছেন।  সুভাষচন্দ্র আদি এই সকল মহাবীরগণ যদি ভারত কে স্বাধীন করার চেষ্টা না করে ভগবানের অবতারের আশায় পড়ে থাকতেন তাহলে আজও এই ভারত স্বাধীন হতো না। 

এই ভারত বা আর্যাবর্ত একসময় বিশ্বগুরু ছিল, কিন্তু আজ তার কি পরিণতি হয়েছে তা আমরা সকলে দেখতে পাচ্ছি। এই সেই ভারত যে ভারতে শ্রীরামের মত পুরুষ উত্তমের জন্ম হয়েছে, এই সেই ভারত যেখানে শ্রীকৃষ্ণের মত মহান ধর্মজ্ঞ, মহাবলবান, মহাযোগীর জন্ম হয়েছে, সেই শ্রীকৃষ্ণ শ্রীরাম কে আদর্শ মনে করার সনাতনীরা আজ ধর্মের নামে যতটা মিথ্যাকথা বলে ততটা কোনো দেশের লোকেরা বলেনা, ধর্মের নামে ভণ্ডামি সবচেয়ে বেশি চলে এই ভারতে, আমার কথাটি অনেকের অপ্রিয় লাগবে কিন্তু একটা বাস্তবিক। যারা নিজেদের সনাতনী মনে করে তারা বেদ, ব্রাহ্মণ, উপনিষদ আদি বেদানুকূল শাস্ত্র কে মেনে চলার চেয়ে লোকের শোনা কথায় বেশি বিশ্বাসী, আর এদেরকে ঠকিয়ে ধর্মের নামে ব্যবসা করার জন্য অবতার আর দূতের শেষ নেই। হরিচাঁদ, গুরুচাঁদ, অনুকূল, রামকৃষ্ণ, রামপাল, কবির, আশারাম, রামরহিম আদি বহু অবতার ও দূত তৈরি হয়েছে। এমন চলতে থাকলে সনাতন ধর্মে কতটা বিভেদ বাড়তে পারে সেই বিষয়ে একটু বিচার করলেই বুঝতে পারবেন।



নমস্তে

গীতা শাস্ত্র বিরোধী বিবেকানন্দের কথন



বিবেকানন্দের সম্পর্কে অজানা কিছু সত্য







বিবেকানন্দের জ্ঞান সম্পর্কে প্রশংসা করতে করতে তো হিন্দু ভাইরা মুখে ফ্যানা তুলে ফেলে! বিবেকানন্দের বিরুদ্ধে কিছু বললেই মুসলিম বলে উপাধি দেওয়া হয়, কারণ আমাদের হিন্দু ভাইদের বিশ্বাস যে বিবেকানন্দ মহাজ্ঞানী ছিল এবং বিবেকানন্দ সনাতন ধর্মকে বিশ্বে ছড়িয়ে দিয়েছে। তা আসুন একটু দেখে নেওয়া যাক যে বিবেকানন্দের কতটা জ্ঞান ছিল বৈদিক শাস্ত্র গীতা সম্পর্কে, ১৮৯৮ সালে বেলুড় মঠে বিবেকানন্দ এবং তার এক শিষ্য ধর্মীয় আলোচনা করেন, তো আসুন দেখি তাদের সেই একটু কথোপকথন____


"শিষ্য :- স্বামীজী মাছ-মাংস খাওয়া উচিত এবং 
আবশ্যক কি ? 

এই প্রশ্নের উত্তরে বিবেকানন্দ বললেন___

বিবেকানন্দ :- খুব খাবি বাবা! তাতে যা পাপ হবে, তা সব আমার।" 

 গ্রন্থ:- বিবেকানন্দ বাণী ও রচনা খণ্ড- ৯

বিবেকানন্দ বলছে যে -খুব খাবি, কিন্তু যা পাপ হবে তা আমার অর্থাৎ যে পাপ হবে তা বিবেকানন্দ গ্রহণ করবে। শোনা যায় যে বিবেকানন্দ নাকি সব সময় গীতা নিয়ে ঘুরতো এবং গীতা পাঠ করতো। কিন্তু আমি বিবেকানন্দের এই জ্ঞান দেখে বলতে পারি যে বিবেকানন্দ যদি গীতাকে কোনোদিন ঠিক করে পড়তো তাহলে এই ধরণের কথা শাস্ত্র বিরোধী কথন কখনোই বলতো না, কারণ গীতায় ভগবান শ্রীকৃষ্ণ বলছেন যে "ন আদত্তে কস্যচিত্ পাপম্ ন চ এব সুকৃতম্ বিভুঃ" গীতা ৫/১৫= অর্থাৎ পরমাত্মা কারোর পাপকে গ্রহণ করেনা আর না কারোর পূণ্যকে গ্রহণ করে।  সর্বশক্তিমান পরমাত্মাও স্বয়ং কারোর পাপ গ্রহণ করেনা কিন্তু দেখুন আমাদের বিবেকানন্দ কি সুন্দর ভাবে বলে দিলেন যে 'যা পাপ হবে তা আমার'।বিবেকানন্দের উক্ত কথনের তাৎপর্য এই যে সে অন্যের পাপকে গ্রহণ করার ক্ষমতা রাখে, আমাদের হিন্দু ভাইরা বিবেকানন্দের সম্পর্কে যতটা জানে তার থেকে বেশির ভাগ মিথ্যাচার করেই বিবেকানন্দকে শ্রেষ্ঠ বানাতে চায়, কিন্তু এগুলো করার আগে এইটা ভাবা উচিত যে মিথ্যার পরাজয় নিশ্চিত।


নমস্তে 🙏





পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দকে গালি দেয় কেন ?





পৌরাণিক ভাইরা মহর্ষি দয়ানন্দ এবং আর্য়সমাজ কে কেন গালি দেয় ?

✍️যখন আমরা(আর্যসমাজিরা) ভণ্ড,ধুর্তদের বিরুদ্ধে লিখি তখন পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দকে গালি দেয়।

✍️যখন আমরা ভাগবত আদি পুরাণের অশ্লীলতার বিরুদ্ধে  বলি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।

✍️ শ্রীরাম, শ্রীকৃষ্ণ মাংসাহারী ছিলোনা  যখন আমরা এমন সিদ্ধ করি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি  দয়ানন্দ কে গালি দেয়।

✍️যখন আমরা সিদ্ধ করি যে যোগীরাজ কৃষ্ণের প্রায় ১৬১০৮ স্ত্রী ছিলনা (তার শুধু একটি স্ত্রী ছিল যার নাম রুক্মিণী), তখনও পৌরাণিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।

✍️যখন আমরা বেদের বিজ্ঞানকে তুলে ধরি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।

 ✍️যখন আমরা সায়ণ, ম্যাক্সমুলার, রমেশচন্দ্র  আদির বেদ ভাষ্যে থাকা গরু, ঘোড়া, মহিষের মাংস খাওয়া এবং নানান অশ্লীলতা যুক্ত বিকৃত বেদ ভাষ্য কে মিথ্যা বলে আর্যসমাজের সঠিক বেদ ভাষ্য কে তুলে ধরি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️মহর্ষি দয়ানন্দ বলেছেন যে তিনি ঋষি ব্রহ্মা থেকে ঋষি জৈমিনি পর্যন্ত সব্বাই কে সম্মান করে এবং তাদের আদেশ মেনে চলে তবুও এই পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️যখন আমরা বৈদিক শাস্ত্র এবং যুক্তি তর্ক দ্বারা মূর্তি পূজা কে খণ্ডন করি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️ভাগবত পুরাণ, বিষ্ণু পুরাণ, ব্রহ্মবৈবর্ত পুরাণ আদি পুরাণে কৃষ্ণ কে লুচ্চা বানানোর হয়েছে তবুও এই সমস্ত পুরাণকে ইহারা মেনে চলে। কিন্তু মহর্ষি দয়ানন্দ বলেছিলেন যে কৃষ্ণ একজন আপ্ত পুরুষ ছিল অর্থাৎ কৃষ্ণ একজন এমন পুরুষ ছিলেন যিনি কখনোই কোনো ভুল কর্ম করেনি। তবুও পৌরাণিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।।



✍️শুদ্ধি আন্দোলন শুরু করেছিল মহর্ষি দয়ানন্দ সেই আন্দোলন কে সারা ভারত ছড়িয়ে দিয়েছিল আর্যবীর স্বামী শ্রদ্ধানন্দ সরস্বতী,যে শুদ্ধির মাধ্যমে লক্ষ লক্ষ মুসলিম খ্রিস্টান কে বৈদিক ধর্মে আনা হয়েছিল, আজও এই কাজ আর্যসমাজ করেই চলেছে দেশ বিদেশের বিভিন্ন স্থানে , তবুও পৌরাণিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️মহর্ষি দয়ানন্দ সর্বপ্রথম বলেন যে মনুস্মৃতি কে বিকৃত করা হয়েছে, কারণ মনুস্মৃতির মধ্যে স্ববিরোধী শ্লোক পাওয়া যায়, প্রকরণ বিরুদ্ধে শ্লোক পাওয়া যায় আর এই সমস্ত শ্লোক গুলোতে শুদ্রদের,নারীদের ঘৃণা করা হয়েছে। তাই আর্যসমাজিরা মনুস্মৃতির প্রক্ষিপ্ত মিথ্যা শ্লোক কে মানেনা কাজেই আর্যসমাজের মনুস্মৃতি ভাষ্যতে কোনো প্রক্ষিপ্ত শ্লোক নেই, এবং মনুস্মৃতির কোন শ্লোক কেন প্রক্ষিপ্ত সেই বিষয় গুলোও তুলে ধরা হয়েছে বৈদিক শাস্ত্র দ্বারা, তবুও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️যখন আমরা ভাগবত পুরাণে উল্লেখিত পিতা ব্রহ্মা এবং মেয়ে সরস্বতীর অশ্লীল যৌন লীলার বিরুদ্ধে কথা বলি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️যখন আমরা শিব পুরাণে উল্লেখিত দারুবনে ঋষিদের অভিশাপে শিবের লিঙ্গ কেটে পড়ার কাহিনী কে মিথ্যা বলি এবং খণ্ডন করি তখনও ইহারা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।



✍️যখন আমরা কামাখ্যা যোনি পূজা করাকে অশ্লীলতা বলি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️যখন আমরা পুরাণের অবৈজ্ঞানিক কাহিনী কে খণ্ডন করি জ্ঞান এবং যুক্তি দ্বারা তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️যখন আমরা বৈদিক শাস্ত্রের প্রমাণ দিয়ে তুলে ধরি যে আমাদের চার বর্ণ হলো গুণ এবং কর্ম অনুসারে কিন্তু জন্ম অনুসারে নয়।  তখনও পৌরাণিক মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️যখন আমরা উলঙ্গ কালী পূজার অশ্লীলতার বিরুদ্ধে কথা বলি তখনও ইহারা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


✍️ আমরা মাংস খেকো বিবেকানন্দ কে সন্ন্যাসী মানিনা কিন্তু বিবেকানন্দ কে এক ভণ্ড পশু হিসেবে মান্য করি কারণ শ্রেষ্ঠ আচার্য্য চাণক্য বলেছেন যে মাংস ভক্ষণকারীরা হলো মনুষ্য আকারের পশু। চাণক্যনীতি ৮/২২। তবুও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।



✍️আমরা বলি যে বেদ হলো সমস্ত জ্ঞানের মূল এবং সংষ্কৃত হলো সমস্ত ভাষার মূল তবুও পৌরাণিক মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।


 ✍️যখন আমরা ভাগবত পুরাণে উল্লিখিত ভগবান শঙ্কর দ্বারা ভগবান বিষ্ণুর ধর্ষণ এর অশ্লীল কাহিনীর  বিরুদ্ধে কথা বলি তখনও পৌরানিকরা মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেয়।



বলছি এই পৌরানিকদের কাজই কি মহর্ষি দয়ানন্দ কে গালি দেওয়া আর অপমানিত করা ? নাকি এই পৌরাণিক চায় যে তারা পুরাণ কাহিনীর মূর্খতা, অশ্লীলতার মধ্যে আরোই গভীর ভাবে প্রবেশ করবে ?

নাকি এই পৌরানিকরা প্রতিজ্ঞা করেছে যে তারা পুরাণের অশ্লীলতা, ভণ্ডামি এবং মিথ্যা কে সর্বদা সম্মান করবে ?

এই পৌরানিকরা কেন চায়না যে বেদের আলো পুরো বিশ্ব ছড়িয়ে পড়ুক ? আমার মনে হয় এই পৌরাণিক হিন্দুরা চায়না যে তারা পূর্বের নাম 'আর্য়' কে ধারণ করুক!

যদি এই পৌরানিকরা চাইতো যে পরমাত্মার 'বেদ' সমস্ত জায়গায় ছড়িয়ে পড়ুক তাহলে তারা সমস্ত অশ্লীলতা, অন্ধবিশ্বাসকে ত্যাগ করে এই ভারতকে পুনরায় বিশ্বগুরু বানানোর চেষ্ঠা করতো। আর বেদে দেওয়া পরমাত্মার এই জ্ঞান কে শরণ করে চলতো যে-  'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' ऋग्वेद ९/६३/५ অর্থাৎ এই বিশ্বকে আর্য় বানাও........


মনুষ্যের মতো দেখতে হলেই কি সে মনুষ্য ?

প্রশ্নঃ মনুষ্যের মতো দেখতে হলেই কি সে মনুষ্য ?


উত্তরঃ না কখনোই নয়, মনুষ্যের মতো দেখতে যদি সকল কে মনুষ্য বলা হয় তাহলে সেই কথা বেদ আদি শাস্ত্র এবং যুক্তি বিরুদ্ধ হবে। কারণ ঋগ্বেদের মধ্যে বলা হয়েছে যে  'मनुर्भव' অর্থাৎ 'মানুষ হও' ঋগ্বেদ ১০/৫৩/৬। এইবার ভাবুন তো মনুষ্য আকার সকল কে যদি প্রকৃত অর্থে মানুষ বলা হয় তাহলে বেদ শাস্ত্র কাকে  মানুষ হতে বলছে ? এই মনুষ্যের পরিভাষা করতে গিয়ে মহর্ষি যাস্ক বলেছেন যে - 'मनुष्यः कस्मात् मत्वा कर्माणि सीव्यति' निरूक्त ३/७ অর্থাৎ 'যিনি বিচার পূর্বক কর্ম করে তিনিই হলো মনুষ্য' নিরুক্ত ৩/৭। কাজেই সকল কে মনুষ্য বলা প্রকৃত অর্থে ঠিক না, একমাত্র যে ব্যক্তির মধ্যে  মনুষ্যের গুণ থাকে একমাত্র তাকেই মনুষ্য বলা যাবে।

কাজেই আচার্য্য চাণক্য মনুষ্য আকার অমানুষের সম্পর্কে বলতে গিয়ে বলছেন যে -মূর্খকে দূর করা উচিত, কারণ ইহারা দেখতে মনুষ্যের মতো কিন্তু যথার্থ ভাবে দেখো তো দুই পায়ের পশু। চাণক্যনীতি ৩/৭। আচার্য্য চাণক্যজী মূর্খকে পশু বলেছে, কিন্তু  মূর্খ কে পশু বললে যদি কোনো ব্যক্তি বলে যে এইটা একটা গালি, তো সেই ব্যক্তিকেও পশু বলা যাবে কারণ তার কোনো এই বিষয়ে যোগ্যতা নেই তবুও মূর্খের মতো কথা বলতে এসেছে। এরূপ যোগীরাজ কৃষ্ণও অর্জুনের মূর্খতা দেখে তাকে অনার্য অর্থাৎ অসভ্য, অশ্রেষ্ঠ বলেছিল, গীতা ২/২।


নমস্তে
মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী

কোনো স্থানে যোগ্য উপদেশক থাকলে কি উপকার হয় আর না থাকলে কি ক্ষতি হয় ?

প্রশ্নঃ কোনো স্থানে যোগ্য উপদেশক থাকলে কি উপকার হয় আর না থাকলে কি ক্ষতি হয় ? 

উত্তরঃ এই বিষয়ে মহর্ষি কপিল কয়েকটি সূত্র দিয়ে গেছেন,,.....

उपदेश्योपदेष्ट्टत्वात् तत्सिद्धिः ।।सांख्यदर्शन ३/७९

অর্থঃ (উপদেশ‍্যোপদেষ্ট্টাত্) উদ্দেশ্যের উপদেষ্টা হওয়ার ফলে (তত্সিদ্ধিঃ) জীবন মুক্ত হওয়া সিদ্ধ হয়।। সাংখ্যদর্শন ৩/৭৯ 

इतरथाहन्धपरम्परा ।। सांख्यदर्शन ३/८१ 

অর্থঃ (ইতর) অন্যথা (অন্ধপরম্পরা) অন্ধপরম্পরা 
সমাজে চলবে।। সাংখ্যদর্শন ৩/৮১


অর্থাৎ যখন যোগ্য উপদেশক থাকে তখন ধর্ম,অর্থ, কাম, মোক্ষ ভালো ভাবে সিদ্ধ হয়, কিন্তু যখন কোনো যোগ্য উপদেশক থাকে না তখন সমাজে অন্ধপরম্পরা চলতেই থাকে। যেমন আমাদের হিন্দু সমাজে চলছে হাজারো বছর ধরে চলে আসছে অন্ধবিশ্বাস মূর্খতা এবং অন্ধভক্তি!